अभी-अभी उसने पहनी है उम्र सोलह की... | प्रतिभा कटियारी
अभी-अभी उसने पहनी है उम्र सोलह की... | प्रतिभा कटियारी

अभी-अभी उसने पहनी है उम्र सोलह की… | प्रतिभा कटियारी

अभी-अभी उसने पहनी है उम्र सोलह की… | प्रतिभा कटियारी

उम्र का सोलहवाँ साल
उसने उठाकर
आँगन वाले ऊँचे आले में रख दिया था
गले में बस माँ की स्मृतियों में दर्ज बचपन
और स्कूल के रजिस्टर में चढ़ी उम्र पहनी
कभी कोई नहीं जान पाया
उम्र उस लंबे इंतजार की
जो आँखों में पहनकर
ना जाने कितनी सदियों से
धरती की परिक्रमा कर रही है एक स्त्री
और संचित कर रही है
कभी गंगा, कभी वोल्गा, कभी टेम्स
नदी का पानी अपने इंतजार की मशक के भीतर
उसने कभी जिक्र ही नहीं किया
अपनी देह पर पड़े नीले निशानों की उम्र का
दुनिया के किसी भी देश की आजादी ने
किसी भी हुकूमत ने
नहीं गिने साल उन नीले निशानों के
उन नीले निशानों पर
अपनी विजयी पताकाएँ ही फहराई सबने
सुबह से लेकर देर रात तक
कभी दफ्तर, कभी रसोई, कभी बिस्तर पर
एक दिन में बरसों का सफर तय करते हुए
वो भूल ही चुकी है कि
जिंदगी की दीवार पर लगे कैलेंडर को बदले
ना जाने कितने बरस हुए
कौन लगा पाएगा पाँव की बिवाइयों की उम्र का अंदाजा
और बता पाएगा सही उम्र उस स्त्री की
जिसने धरती की तरह बस गोल-गोल घूमना ही सीखा है
रुकना नहीं जाना अब तक
मुस्कुराहटों के भीतर गोता लगाना आसान है शायद
मत खाईएगा धोखा उसकी त्वचा पर पड़ी झुर्रियों से
उसके साँवले रंग और
बालों में आई सफेदी से
कि आँगन के सबसे ऊँचे वाले आले से उतारकर
अभी-अभी उसने पहनी है उम्र सोलह की…

See also  प्यार मेरे लिए सिर्फ एक उम्मीद का नाम है

Pratibha Katiyar Stories / Poems

हरा | प्रतिभा कटियारी

हरा | प्रतिभा कटियारी हरा | प्रतिभा कटियारी कुछ जो नहीं बीततासमूचा बीतने के बाद भीआमद की आहटें नहीं ढक पातीइंतजार का रेगिस्तानबाद भीषण बारिशों के भीबाँझ ही रह जाता हैधरती का कोई कोनाबेवजह हाथ से छूटकर टूट जाता हैचाय का प्यालासचमुच, क्लोरोफिल का होनाकाफी नहीं होता पत्तियों कोहरा रखने के लिए…

हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी

हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी हत्यारे की आँख का आँसू और तुम्हारा चुंबन सुनो | प्रतिभा कटियारी सुनो,बहुत तेज आँधियाँ हैंइतनी तेज कि अगरये जिस्म को छूकर भी गुजर जाएँतो जख्मी होना लाजिमी हैंऔर वो जिस्मों को ही नहींसमूची जिंदगियों को छूकर निकल रही हैंउन्हें निगल रही हैंना……

सौंदर्य | प्रतिभा कटियारी

सौंदर्य | प्रतिभा कटियारी जबसे समझ लिया सौंदर्य का असल रूपतबसे उतार फेंके जेवरात सारेन रहा चाव, सजने-सँवरने कान प्रशंसाओं की दरकार ही रहीनदी के आईने में देखी जो अपनी ही मुस्कानतो उलझे बालों में ही सँवर गईखेतों में काम करने वालियों सेमिलाई नजरतेज धूप को उतरने दिया जिस्म परन, कोई सनस्क्रीन भी नहींरोज साँवली…

See also  सूत-कपास | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

सिर्फ तुम्हारा खयाल | प्रतिभा कटियारी

सिर्फ तुम्हारा खयाल | प्रतिभा कटियारी खिला देता है हजारों गुलाबबहा देता कल कल करती नदियाँसदियों की सूखी, बंजर जमीन परतुम्हारा खयालकोयल को कर देता है बावलाऔर वो बेमौसम गुंजानेलगती है आकाशटेरती ही जाती हैकुहू कुहू कुहू कुहूतुम्हारा खयालहथेलियों पर उगाता हैसतरंगा इंद्रधनुषकाँधे पर आ बैठते हैं तमाम मौसमताकते हैं टुकुर-टुकुरखिलखिलाती हैं मोगरे की कलियाँबेहिसाबहालाँकि…

सुनो, मैं तुम तक पहुँचना चाहती हूँ… | प्रतिभा कटियारी

सुनो, मैं तुम तक पहुँचना चाहती हूँ… | प्रतिभा कटियारी सुनो, मैं तुम तक पहुँचना चाहती हूँतुम्हारे तसव्वुर को हथेली पर लेकरहर रात निकल पड़ता है मेरा मनदहलीज के उस पार…मैं तुम्हारे शहर की हवाओं मेंघुल जाना चाहती हूँ,तुम्हारे कंधे पर गिरने वाली ओसबनना चाहती हूँजिन रास्तों पर भागते-फिरते हो तुममैं उन रास्तों के सीने…

शहर लंदन | प्रतिभा कटियारी

शहर लंदन | प्रतिभा कटियारी शहर लंदन | प्रतिभा कटियारी एक शहर बारिश की मुट्ठियों मेंधूप का इंतजार बचाता हैथेम्स नदी की हथेलियों पे रखता हैशहर को सींचने की ताकीदनिहायत खूबसूरत पुल कहते हैंपार मत करो मुझे, प्यार करोकला दीर्घाओं और राजमहल के बाहरलगता है कलाओं का जमघटएक बच्ची फुलाती है बड़ा सा गुब्बाराकई वहम…

शब्द भर ‘ठीक’ | प्रतिभा कटियारी

शब्द भर ‘ठीक’ | प्रतिभा कटियारी शब्द भर ‘ठीक’ | प्रतिभा कटियारी ‘ठीक’ कहने से पहले जाँच लेना खुद को ठीक सेकि कहीं ‘अठीक’ साथ चिपक न जाएकहे गए ‘ठीक’ की पीठ पर’ठीक’ को सिर्फ शब्द भर बना रहने देनाउसे अपनी मुस्कुराहटों से सजाना, सँवरनाऔर जो इस ठीक से बचा हुआ सच है नउदास, तन्हा,…

वही बात | प्रतिभा कटियारी

वही बात | प्रतिभा कटियारी वही बात | प्रतिभा कटियारी उनके पास थीं बंदूकेंउन्हें बस कंधों की तलाश थी,उन्हें बस सीने चाहिए थेउनके हाथों में तलवारें थीं,उनके पास चक्रव्यूह थे बहुत सारेवे तलाश रहे थे मासूम अभिमन्युउनके पास थे क्रूर ठहाकेऔर वीभत्स हँसीवे तलाश रहे थे द्रौपदीउन्होंने हमें ही चुनाहमें मारने के लिएहमारे सीने परहमसे…

रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है | प्रतिभा कटियारी

रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है | प्रतिभा कटियारी रोने के लिए आत्मा को निचोड़ना पड़ता है | प्रतिभा कटियारी तुमने रोना भी नहीं सीखा ठीक सेऐसे उदास होकर भी कोई रोता है क्यायूँ बूँद-बूँद आँखों से बरसना भीकोई रोना हैतुम इसे दुख कहते होन, ये दुख नहींरोने के लिए आत्मा को निचोड़ना…

Loading…

Something went wrong. Please refresh the page and/or try again.

Leave a comment

Leave a Reply