गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।बेचा है ईमान धरम तब, घर में शानो शौकत आई है।संतोष बेच तृष्णा खरीदी, देखो कितनी मंहगाई है।। बीघा बेच स्कवायर फीट, खरीदा ये कैसी सौदाई है।संयुक्त परिवार के वट वृक्ष से, टूटी ये पीढ़ी मुरझाई है।।रिश्तों में है भरी […]
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कुर्सीनामा | गोरख पाण्डेय
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मधुशाला | हरिवंशराय बच्चन
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कवि की वासना | हरिवंशराय बच्चन
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