परीक्षा-गुरु प्रकरण-१३ बिगाड़का मूल-बिवाद
परीक्षा-गुरु प्रकरण-१३ बिगाड़का मूल-बिवाद

परीक्षा-गुरु प्रकरण-१३ बिगाड़का मूल-बि वाद Pariksha-Guru Prakaran-13 : Bigadka mul- bee vad

परीक्षा-गुरु प्रकरण-१३ बिगाड़का मूल-बि वाद

को पै बिन अपराध । रीझै बिन कारन जुनर ।।

ता को ज्ञी ल असाध । शरदकालके मेघ जों ।।

बिदुरप्रजागरे.

लाला मदनमोहन हवा खाकर आए उस्समय लाला हरकिशोर साठन की गठरी लाकर कमरे मैं बैठे थे.

“कल तुमनें लाला हरदयाल साहब के साम्ने बड़ी ढिठाई की परन्तु मैं पुरानी बातोंका बिचार करके उस्‍समय कुछ नहीं बोला” लाला मदनमोहन नें कहा.

“आपनें बड़ी दया की पर अब मुझको आपसै एकान्‍त मैं कुछ कहना है, अवकाश हो तो सुन लीजिये” लाला हरकिशोर बोले.

“यहां तो एकांत ही है तुमको जो कुछ कहना हो निस्सन्देह कहो” लाला मदनमोहन नें जवाब दिया.

“मुझको इतना ही कहना है कि मैंनें अब तक अपनी समझ मुजिब आपको अप्रसन्‍न करनें की कोई बात नहीं की परन्तु मेरी सब बातें आपको बुरी लगती हैं तो मैं भी ज्‍याद: आवा जाई रखनें मैं प्रसन्‍न नहीं हूँ. किसी नें सच कहा है “जब तो हम गुल थे मियां लगते हजारों के गले ।। अब तो हम खार हुए सब सै किनारे ही भले ।।” संसार मैं प्रीति स्‍वार्थ परता का दूसरा नाम है. समय निकले पीछै दूसरे सै मेल रखनें की किसी को क्‍या गरज़ पड़ी है ? अच्‍छा ! महरबानी करके मेरे माल की कीमत मुझको दिलवा दें” हरकिशोर नें रूखाई सै कहा.

“क्या तुम कीमत का तकाजा करके लाला साहब को दबाया चाहते हो ?” मुन्शी चुन्‍नीलाल बोले.

“हरगिज़ नहीं मेरी क्‍या मजाल ?” हरकिशोर कहनें लगे – “सब जान्‍ते हैं कि मेरे पास गांठ की पूंजी नहीं है, मैं जहां तहां सै माल लाकर साहब के हुक्‍म की तामील कर देता था परन्तु अबकी बार रुपे मिलनें मैं देर हुई. कई एकरार झूठै हो गए इसलिये लोगों का विश्‍वास जाता रहा अब आज कल मैं उन्‍के माल की कीमत उन्के पास न पहुँचेगी तो वे मेरे ऊपर नालिश कर देंगे और मेरी इज्‍जत धूल मैं मिल जायगी.”

“तुम कुछ दिन धैर्य धरो तुम्‍हारे रुपे का भुगतान हम बहुत जल्‍दी कर देंगे” लाला मदनमोहन नें कहा.

जब मेरे ऊपर नालिश हो गई और मेरी साख जाती रही तो फ़िर रुपे मिलनें सै मेरा क्‍या काम निकला ? “देखो अवसर को भलो जासों सुधरे काम । खेती सूखे बरसवो धन कौ निपट निकाम ।।” मैं जानाता हूँ कि आप को अपनें कारण किसी गरीब की इज्‍जत मैं बट्टा लगाना हरगिज मंजूर न होगा” लाला हरकिशोर नें कुछ नरम पड़कर कहा.

“तुम्‍हारा रुपया कहां जाता है ? तुम जरा धैर्य रक्‍खो. तुमनें यहां सै बहुत कुछ फायदा उठाया है, फ़िर अबकी बार रुपे मिलनें मैं दो, चार दिनकी देर हो गई तो क्‍या अनर्थ हो गया ? तुमको ऐसा कड़ा तक़ाज़ा करनें मैं लाज नहीं आती ? क्‍या संसार सै मेल मुलाहजा बिल्‍कुल उठगया ?” मुन्शी चुन्‍नीलाल नें कहा.

“मैंभी इसी चारा बिचार मैं हूँ” हरकिशोर नें जवाब दिया “मैं तो माल देकर मोल चाहता हूँ. ज़रुरत के सबब सै तक़ाज़ा करता हूँ पर न जानें और लोगों को क्‍या होगया जो बेसबब मेरे पीछै पड़ रहे हैं ? मुझसै उन्‍को बहुत कुछ लाभ हुआ होगा परन्तु इस्‍समय वे सब ‘तोता चश्‍म’ होगए. उन्‍हीं के कारण मुझको यह तक़ाजा करना पड़ता है. जो आजकल मैं मेरे लेनदारोंका रुपया न चुका, तो वे निस्सन्देह मुझपर नालिश कर देंगे और मैं ग़रीब, अमीरोंकी तरह दबाव डालकर उन्‍को किसी तरह न रोक सकूंगा ?

“तुम्‍हारी ठगविद्या हम अच्छी तरह जान्ते हैं, तुम्‍हारी जिद सै इस्‍समय तुमको फूटी कौड़ी न मिलेगी, तुम्‍हारे मन मैं आवे सो करो.” मुन्शी चुन्‍नीलाल नें कहा.

“जनाब जबान सम्‍हाल कर बोलिये. माल देकर कीमत मांगना ठगविद्या है ?” गिरधर सच कहता है “साईं नदी समुद्रसों मिली बड़प्‍पन जानी ।। जात नास भयो आपनो मान महत की हानि ।। मान महत की हानि कहो अब कैसी कीजै ।। जलखारी ह्यै गयो ताहि कहो कैसैं पीजै ।। कह गिरधर कबिराय कच्‍छ मच्‍छ न सकुचाई ।। बड़ो फ़जीहत चार भयो नदियन को साईं ।।”

“बस अब तुम यहां सै चल दो. ऐसे बाजारू आदमियोंका यहां कुछ काम नहीं है” मास्‍टर शिंभूदयाल नें कहा.

“मैंनें किसी अमीर के लड़केको बहका कर बदचलनी सिखाई ? या किसी अमीर के लड़केको भोगबिलास मैं डाल कर उस्‍की दौलत ठग ली जो तुम मुझे बाजारू आदमी बताते हो ?”

“तुम कपड़ा बेचनें आएहो या झगड़ा करनें आएहो ?” मुन्शी चुन्‍नीलाल पूछनें लगे.

“न मैं कपड़ा बेचनें आया न मैं झगड़ा करनें आया. मैंतो अपना रुपया वसूल करनें आया हूँ. मेरा रुपया मेरी झोली मैं डालिये फ़िर मैं यहां क्षण भर न ठैरूंगा”

“नहीं जी, तुमको जबरदस्ती यहां ठैरनें का कुछ अखत्‍यार नहीं है, रुपे का दावा हो तो जाकर अदालत मैं नालिश करो.” मास्‍टर शिंभूदयाल बोले.

“तुम लोग अपनी गलीके शेरहो- यहां चाहे जो कहलो परन्तु अदालत मैं तुम्‍हारी गीदड़ भपकी नहीं चल सक्ती. तुम नहीं जान्‍ते कि ज्‍याद: घिस्‍नें पर चंदन सै भी आग निकलती है. अच्‍छे आदमी को ख़ातर शिष्‍टाचारी सै चाहे जितना दबालो परन्तु अभिमान और धमको सै वह क़भी नहीं दबता”

“तो क्‍या तुम हमको इन बातों सै दबा लोगे ?” लाला मदनमोहन नें त्‍योरी चढ़ाकर कहा.

“नहीं साहब, मेरा क्‍या मकदूर है ? मैं ग़रीब, आप अमीर. मुझको दिनभर रोज़गार धंधा करना पड़ता है, आपका सबदिन हँसी दिल्‍लगी की बातों मैं जाता है. मैं दिनभर पैदल भटकता हूँ, आप सवारी बिना एक कदम नहीं चल्‍ते. मेरे रहनें की ए‍क झोंपड़ी, आप के बड़े बड़े महल. मुल्‍क मैं अकालहो, ग़रीब बिचारे भूखों मरतेहों, आप के यहां दिन रात ये ही हाहा, हीहो, रहैगी. सच है आप पर उन्‍का क्‍या हक़ है ? उन्‍सै आपका क्‍या सम्बन्ध है ? परमेश्‍वर नें आपको मनमानी मोज करनें के लिये दौलत देदी फ़िर औरों के दु:ख दर्द मैं पड़नें की आपको क्‍या ज़रूरत रही ? आपके लिये नीति अनीति की कोई रोक नहीं है आप-“

“क्‍यों जी ! तुम अपनी बकवाद नहीं छोड़ते-अच्‍छा जमादार इन्‍को हाथ पकड़ कर यहां सै बाहर निकालदो और इन्‍की गठरी उठाकर गलीं में फेंकदो” मुन्शी चुन्‍नीलाल नें हुक्‍म दिया.

“मुझको उठानें की क्‍या जरुरत है ? मैं आप जाता हूँ परन्तु तुमनें बेसबब मेरी इज्‍ज़त ली है इस्का परिणाम थोड़े दिन मैं देखोगे. जिस तरह राजा द्रुपद नें बचपन मैं द्रोणाचार्य सै मित्रता करके राज पानें पर उन्‍का अनादर किया तब द्रोणाचार्य नें कौरव पांडवों को चढ़ा ले जाकर उस्‍की मुश्‍कें बंधवा ली थीं और चाणक्‍यनें अपनें अपमान होनें पर नन्‍दबंश का नाश करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दिखाई थी. पृथ्‍वीराज नें संयोगता के बसवर्ती होकर चन्‍द और हाहुली राय को लोंडियों के हाथ पिटवाया तब हाहुली राय नें उस्‍का बदला पृथ्‍वीराज सै लिया था, इसी तरह परमेश्‍वर नें चाहा तो मैं भी इस्‍का बदला आपसै लेकर रहूँगा” यह कहक़र हरकिशोर नें तत्‍काल अपनी गठरी उठाली और गुस्‍सै मैं मूछोंपर ताव देता चला गया.

“ये बदला लेंगे ! ऐसे बदला लेनेंवाले सैकड़ों झकमारते फ़िरते हैं” हरकिशोर के जाते ही मुन्शी चुन्‍नीलाल नें मदनमोहन को दिलासा देनें के लिये कहा.

“जो यौं किसी के बैर भाव सै किसी का नुक्सान होजाया करै तो बस संसार के काम ही बन्द होजायं” मास्‍टर शिंभूदयाल बोले.

“सूर्य चंद्रमा की तरफ़ धूल फैंकनें वाले अपनेंही सिर पर धूल डालते हैं” पंडित पुरुषोत्तमदास नें कहा. पर इनबातों सै लाला मदनमोहन को संतोष न हुआ.

“मैं हरकिशोर को ऐसा नहीं जान्‍ता था, वह तो आज आपे सै बाहर होगए. अच्‍छा ! अब वह नालिश कर दैं तो उन्की जवाब दिही किस तरह करनी चाहिये ? मैं चाहता हूँ कि चाहे जितना रुपया खर्च होजाय परन्तु हरकिशोर के पल्‍लै फूटी कौड़ी न पड़े” लाला मदनमोहन नें अपनें स्‍वभावानुसार कहा.

मदनमोहन के निकटबर्ती जान्‍ते थे कि मदनमोहन जैसे हठीले हैं वैसे ही कमहिम्‍मत हैं, जिस्‍समय उन्‍को किसी तरह का घबराहट हो हरेक आदमी दिलजमई की झूंटी सच्‍ची बातैं बना कर उन्‍को अपनें काबू पर चढ़ा सक्‍ता है और मन चाहा फायदा उठासक्‍ता है इस लिये अब चुन्‍नीलाल नें वह चाल डाली.

“यह मुकद्दमा क्‍या चीज है ! ऐसे सैंकड़ों मुकद्दमें आपके पुन्‍य प्रताप सै चुटकियों मैं उड़ा सक्‍ता हूँ परन्तु इस्‍समय मेरे चित्त को जरा उद्वेग होरहा है इसी सै अकल काम नहीं देती” मुन्शी चुन्‍नीलाल नें कहा.

“क्‍यों तुम्‍हारे चित्त के उद्वेग का क्‍या कारण है ? क्‍या हरकिशोर की धमकी सै डर गए ? ऐसा हो तो विश्‍वास रक्‍खो कि मेरी सब दौलत खर्च होजायगी तो भी तुम्‍हारे ऊपर आंच न आनें दूंगा” लाला मदनमोहन नें कहा.

“नहीं, महाराज ! ऐसी बातोंसै मैं कब डरता हूँ ? और आपके लिये जो तकलीफ मुझको उठानी पड़े उस्‍मैं तो और मेरी इज्‍जत है. आपके उपकारोंका बदला मैं किस तरह नहीं दे सक्ता, परन्तु लड़कीके ब्‍याहके दिन बहुत पास आ गये, तयारी अबतक कुछ नहीं हुई, ब्‍याह आपकी नामवरीके मूजिब करना पड़ेगा, इस्‍सै इन दिनों मेरी अकल कुछ गुमसी हो रही है” मुन्शी चुन्‍नीलालनें कहा.

“तुम धैर्य रक्‍खो तुम्‍हारी लड़कीके ब्‍याहका सब खर्च हम देंगे” लाला मदनमोहन नें एकदम हामी भर ली.

“ऐसी सहायता तो इस सरकार सै सब को मिलती ही है परन्तु मेरी जीविका का वृत्तान्त भी आप को अच्‍छी तरह मालूम है और घर का गृहस्‍थका खर्च भी आपसै छिपा नहीं है, भाई खाली बैठे हैं जब आपके यहांसै कुछ सहायता होगी तो ब्‍याहका काम छिड़ैगा कपड़े लत्ते वगैरे की तैयारी मैं महीनों लगते हैं” मुन्शी चुन्‍नीलालनें कहा.

“लो; ये दो सौ रुपेके नोट लेकर इस्समय तो काम चल्‍ता करो, और बातोंके लिये बंदोबस्‍त पीछेसै कर दिया जायगा” लाला मादनमोहननें नोट देकर कहा.

“जी नहीं हुजूर ! ऐसी क्‍या जल्‍दी थी” मुन्शी चुन्‍नीलाल नोट जेब मैं रखकर बोले,

“यह भी अच्‍छी बिद्या है” पंडितजीनें भरमा भरमी सुनाई.

“मैं जान्‍ता हूँ कि प्रथम तो हरकिशोर नालिश ही नहीं करेंगे और की भी तो दमभर मैं खारिज कर दी जायगी” मुन्शी चुन्‍नीलालनें कहा.

निदान लाला मदनमोहन बहुत देरतक इस प्रकारकी बातों सै अपनी छातीका बोझ हल्‍का करके भोजन करनें गए और गुपचुप बैजनाथके बुलानेंके लिये एक आदमी भेज दिया.

परीक्षा-गुरु – Pariksha Guru

परीक्षा गुरू हिन्दी का प्रथम उपन्यास था जिसकी रचना भारतेन्दु युग के प्रसिद्ध नाटककार लाला श्रीनिवास दास ने 25 नवम्बर,1882 को की थी। 

परीक्षा गुरु पहला आधुनिक हिंदी उपन्यास था। इसने संपन्न परिवारों के युवकों को बुरी संगति के खतरनाक प्रभाव और इसके परिणामस्वरूप ढीली नैतिकता के प्रति आगाह किया। परीक्षा गुरु नए उभरते मध्यम वर्ग की आंतरिक और बाहरी दुनिया को दर्शाता है। पात्र अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हुए औपनिवेशिक समाज के अनुकूल होने की कठिनाई में फंस जाते हैं। हालांकि यह जाहिर तौर पर विशुद्ध रूप से ‘पढ़ने के आनंद’ के लिए लिखा गया था। औपनिवेशिक आधुनिकता की दुनिया भयावह और अप्रतिरोध्य दोनों लगती है।

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Further Reading:

  1. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१ सौदागरकी दुकान
  2. परीक्षा-गुरु प्रकरण- २ अकालमैं अधिकमास
  3. परीक्षा-गुरु प्रकरण- ३ संगतिका फल
  4. परीक्षा-गुरु प्रकरण-४ मित्रमिलाप
  5. परीक्षा-गुरु प्रकरण-५ विषयासक्‍त
  6. परीक्षा-गुरु प्रकरण-६ भले बुरे की पहचान
  7. परीक्षा-गुरु प्रकरण – ७ सावधानी (होशयारी)
  8. परीक्षा-गुरु प्रकरण-८ सबमैं हां
  9. परीक्षा-गुरु प्रकरण-९ सभासद
  10. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१० प्रबन्‍ध (इन्‍तज़ाम)
  11. परीक्षा-गुरु प्रकरण-११ सज्जनता
  12. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१२ सुख दु:ख
  13. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१३ बिगाड़का मूल- बि वाद
  14. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१४ पत्रव्यवहा
  15. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१५ प्रिय अथवा पिय् ?
  16. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१६ सुरा (शराब)
  17. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१७ स्‍वतन्‍त्रता और स्‍वेच्‍छाचार.
  18. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१८ क्षमा
  19. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१९ स्‍वतन्त्रता
  20. परीक्षा-गुरु प्रकरण – २० कृतज्ञता
  21. परीक्षा-गुरु प्रकरण-२१ पति ब्रता
  22. परीक्षा-गुरु प्रकरण-२२ संशय
  23. परीक्षा-गुरु प्रकरण-२३ प्रामाणिकता
  24. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२४ (हाथसै पै दा करनें वाले) (और पोतड़ों के अमीर)
  25. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२५ साहसी पुरुष
  26. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२६ दिवाला
  27. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२७ लोक चर्चा (अफ़वाह).
  28. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२८ फूट का काला मुंह
  29. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२९ बात चीत.
  30. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३० नै राश्‍य (नाउम्‍मेदी).
  31. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३१ चालाक की चूक
  32. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३२ अदालत
  33. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३३ मित्रपरीक्षा
  34. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३४ हीनप्रभा (बदरोबी)
  35. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३५ स्तुति निन्‍दा का भेद
  36. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३६ धोके की टट्टी
  37. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३७ बिपत्तमैं धैर्य
  38. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३८ सच्‍ची प्रीति
  39. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३९ प्रेत भय
  40. परीक्षा-गुरु प्रकरण ४० सुधारनें की रीति
  41. परीक्षा-गुरु प्रकरण ४१ सुखकी परमावधि

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