परीक्षा-गुरु प्रकरण-१५ प्रिय अथवा पिय्
परीक्षा-गुरु प्रकरण-१५ प्रिय अथवा पिय्

Contents

परीक्षा-गुरु प्रकरण-१५ प्रिय अथवा पिय् ? Pariksha-Guru Prakaran-15 : Priya athava Piya ?

परीक्षा-गुरु प्रकरण-१५ प्रिय अथवा पिय् ?

दमयन्ति बिलपतहुती बनमैं अहि भ  पाइ

अहिबध बधिक अधिक भयो ताहूते दुखदाइ

नलोपाख्‍याने.

“ज्‍योतिष की बिध पूरी नहीं मिल्‍ती इसलिये उस्‍पर बिश्‍वास नहीं होता परन्तु प्रश्‍न का बुरा उत्‍तर आवे तो प्रथम हीसै चित्त ऐसा व्‍याकुल हो जाता है कि उस काम के अचानक होंनें पर भी वैसा नहीं होता, और चित्त का असर ऐसा प्रबल होता है कि जिस वस्‍तु की संसार मैं सृष्टि ही न हो वह भी वहम समाजानें सै तत्‍काल दिखाई देनें लगती है. जिस्‍पर जोतिषी ग्रहों को उलट पुलट नहीं कर सक्ते, अच्‍छे बुरे फल को बदल नहीं सक्ते, फ़िर प्रश्‍न करनें सै लाभ क्‍या ? कोई ऐसी बात करनी चाहिये जिस्‍सै कुछ लाभ हो” मुन्शी चुन्‍नीलाल नें कहा.

“आप हुक्‍म दें तो मैं कुछ अर्ज करूं ?” बिहारी बाबू बहुत दिन सै अवसर देख रहे थे वह धीरे सै पूछनें लगे.

“अच्‍छा कहो” मुन्शी चुन्‍नीलाल नें मदनमोहन के कहनें सै पहले ही कह दिया.

“भोजला पहाड़ी पर एक बड़े धनवान जागीरदार रहते हैं. उन्‍को ताश खेलनें का बड़ा व्‍यसन है. वह सदा बाजी बद कर खेल्‍ते हैं और मुझको इस खेल के पत्ते ऐसी राह सै लगानें आते हैं कि जब खेलैं तब अपनी ही जीत हो. मैंनें उन्‍को कितनी ही बार हरादिया इसलिये अब वह मुझको नहीं पतियाते परन्तु आप चाहैं तो मैं वह खेल आपको सिखा दूं फ़िर आप उन्‍सै निधड़क खेलैं. आप हार जायंगे तो वह रकम मैं दूंगा और जीतें तो उस्‍मैं सै मुझको आधी ही दें” बिहारी बाबू नें जुए का नाम छिपा कर मदनमोहन को आसामी बनानें के वास्ते कहा.

“जीतेंगे तो चौथाई देंगे, परन्तु हारनें केलिये रक़म पहले जमा करा दो” मुन्शी चुन्‍नीलाल मदनमोहन की तरफ़ सै मामला करनें लगें.

“हारनें के लिये पहले पांच सौ की थैली अपनें पास रख लीजिये परन्तु जीत मैं, आधा हिस्‍सा लूंगा” बिहारी बाबू हुज्‍जत करनें लगे.

“नहीं, जो चुन्‍नीलाल नें कह दिया वह हो चुका, उस्‍सै अधिक हम कुछ न देंगे” लाला मदनमोहन नें कहा.

और बड़ी मुश्किल सै बिहारी बाबू उस्‍पर कुछ, कुछ राजी हुए परन्तु सौभाग्‍य बस उस्‍समय बाबू बैजनाथ आ गए इस्सै सब काम जहां का तहां अटक गया.

“बिहारी बाबू सै किस बात का मामला हो रहा है ?” बाबू बैजनाथ नें पहुँचते ही पूछा.

“कुछ नहीं, यह तो ताश के खेल का जिक्र था” मुन्शी चुन्‍नीलाल नें साधारण रीति सै कहा.

बिहारी बाबू कहते हैं कि “मैं पत्ते लगानें सिखा दूं जिस्‍तरह पत्ते लगाकर आप एक धनवान जागीरदार सै ताश खेलैं, और बाजी बद लें. जो हारेंगे तो सब नुक्‍सान मैं दूंगा. और जीतेंगे तो उस्‍मैं सै चौथाई ही मैं लूंगा” लाला मदनमोहन नें भोले भाव सै सच्‍चा वृत्तान्त कह दिया.

“यह तो खुला जुआ है और बिहारी बाबू आपको चाट लगानें के लिये प्रथम यह सब्‍ज बाग दिखाते हैं” बाबू बैजनाथ कहनें लगे “जिस तरह सै पहलै एक मेवनें, आपको गड़ी दौलत का तांबेपत्र दिखाया था, और वह सब दौलत गुप चुप आपके यहां ला डालनें की हामी भरता था परन्तु आपसै खोदनें के बहानें सौ, पचास रुपे मार लेगया तब सै लौट कर सूरत तक न दिखाई ! आपको याद होगा कि आपके पास एक बदमाश स्‍याम का शाहजादा बनकर आया था, और उस्‍नें कहा था कि “मैं हिन्दुस्थान की सैर करनें आया हूँ मेरे जहाज़ नें कलकत्ते मैं लंगर कर रक्‍खा है मुझ को यहां खर्च की ज़रूरत है आप अपनें आढ़तिये का नाम मुझे बता दें मैं अपनें नोकरों को लिखकर उस्‍के पास रुपे जमा कर दूंगा जब उस्‍की इत्तला आप के पास आजाय तब आप रुपे मुझे देदें” निदान आप के आढ़तिये के नाम सै तार आप के पास आगया और आपनें रुपे उस्‍को दे दिये, परन्तु वह तार उन्हीं के किसी साथी नें आपके आढ़तिए के नाम सै आपको दे दिया था इसलिये यह भेद खुला उस्‍समय शाहज़ादे का पता न लगा ! एक बार एक मामला करानेंवाला एक मामला आपके पास लाया था जब उस्‍नें कहा था कि “सरकार मैं रसद के लिये लकड़ियों की खरीद है और तहसील मैं ढाई मन का भाव है. मैं सरकारी हुक्‍म आप को दिखा दूंगा आप चार मन के भाव मैं मेरी मारफ़त एक जंगलवाले की लकड़ी लेनी कर लें” यह कहक़र उस्‍नें तहसील सै निर्खनामे की दस्‍तख़ती नक़ल लाकर आपको दिखा दी पर उस भाव मैं सरकार की कुछ खरीददारी न थी ! इन्के सिवाय जिस्‍तरह बहुत से रसायनी तरह, तरह का धोखा देकर सीधे आदमियों को ठगते फ़िरते हैं इसी तरह यह भी जुआरी बनानें की एक चाल है, जिस काम मैं बे लागत और बे महनत बहुतसा फ़ायदा दिख़ाई दे उस्मैं बहुधा कुछ न कुछ धोकेबाज़ी होती है. ऐसे मामलेवाले ऊपर सै सब्‍जबाग दिखाकर भीतर कुछ न कुछ चोरी ज़रूर रखते हैं”

See also  निर्मला अध्याय 9 | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी

“बाबू साहब ! मैंनें जिस तरह राह सै ताश खेलनें के वास्ते कहा था वह हरगिज जुए मैं नहीं गिनी जा सकती परन्तु आप उस्‍को जुआ ही ठैराते हैं तो कहिये जुए मैं क्‍या दोष है ?” बिहारी बाबू मामला बिगड़ता देखकर बोले “दिवाली के दिनों मैं सब संसार जुआ खेल्‍ता है और असल मैं जुआ ए‍क तरह का व्यापार है जो नुकसान के डर सै जुआ बर्जित हो तो और सब तरहके व्यापार भी बर्जित होनें चाहियें. और व्‍यापार मैं घाटा देनें के समय मनुष्‍य की नीयत ठिकानें नहीं रहती परन्तु जुए के लेन देन बाबत अदालत की डिक्री का डर नहीं है तोभी जुआरी अपना सब माल अस्‍बाब बेचकर लेनदारों की कौड़ी, कौड़ी चुका देता है. उस्‍के पास रुपया हो तो वह उस्‍के लुटानें मैं हाथ नहीं रोकता और अपनें काम मैं ऐसा निमग्‍न हो जाता है कि उसै खानें पीनें तक की याद नहीं रहती, उस्‍के पास फूटी कौड़ी न रहै तोभी वह भूखों नहीं मरता फडपर जातें ही जीते जुआरी दो, चार गंडे देकर काम अच्‍छी तरह चला देते हैं.”

“राम ! राम ! दिवाली पर क्‍या ? समझवार तो स्‍वप्‍न मैं भी जुए के पास नहीं जाते जुए सै व्यापार का क्‍या सम्बन्ध ? उस्‍की कुछ सूरत मिल्‍ती है तो बदनी सै मिल्‍ती है पर उस्‍को जुए से अलग कौन समझता है ? उस्‍को प्रतिष्ठित साहूकार कब करते हैं ? सरकार मैं उस्‍की सुनाई कहां होती है ? निरी बातों का जमा खर्च व्‍यापार मैं सर्वथा नहीं गिना जाता. व्‍यापार के तत्‍व ही जुदे हैं. भविष्‍यत काल की अवस्‍था पर दृष्टि पहुँचाना, परता लगाना, माल का खरीदना, बेचना या दिसावरको बीजक भेजकर माल मंगाना और माल भेजकर बदला भुगताना, व्‍यापार है परन्तु जुए में यह बातें कहां ? जुआ तो सब अधर्मों की जड़ है. मनु और बिदुरजी एक स्‍वर सै कहते हैं “सुनो पुरातन बात, जुआ कलह को मूल है ।। हाँसीहूँ मैं तात, तासों नहीं खेलैं चतुर।। ” बाबू बैजनाथ नें कहा.

“आप वृथा तेज होते हैं. मैं खुद जुए का तरफ़दार नहीं हूँ परन्तु विवाद के समय अच्‍छी, अच्‍छी युक्तियों सै अपना पक्ष प्रबल करना चाहिये. क्रोध करके गाली देनें सै जय नहीं होती. आप की दृष्टि मैं मैं झूंठा हूँ परन्तु मेरी सदुक्तियों को आप झूंठा नहीं ठैरा सक्ते. मुझ पर किस तरह का दोषारोपण किया जाय तो उस्‍को युक्ति पूर्वक साबित करना चाहिये और और बातों मैं मेरी भूल निकालनें सै क्‍या वह दोष साबित हो जायगा ?”

“जुए का नुक्सान साबित करनें के लिये विशेष परिश्रम नहीं करना पड़ेगा. देखो नल और युधिष्ठिरादि की बरबादी इस्का प्रत्‍यक्ष प्रमाण है” बाबू बैजनाथ बोले.

“मैं आप सै कुछ अर्ज नहीं कर सक्‍ता परन्तु-“

“बस जी ! रहनें दो बाबू साहब कुछ तुम सै बहस करनें के लिये इस्‍समय यहां नहीं आए” यह कहक़र लाला मदनमोहन बाबू बैजनाथ को अलग लेगए और हरकिशोर की तकरार का सब वृतान्त थोड़े मैं उन्हैं सुना दिया.

“मैं पहले हरकिशोर को अच्‍छा आदमी समझता था. परन्तु कुछ दिन सै उस्‍की चाल बिल्‍कुल बिगड़ गई. उस्‍को आप की प्रतिष्‍ठा का बिल्‍कुल बिचार नहीं रहा और आज तो उस्‍नें ऐसी ढिठाई की कि उस्‍को अवश्‍य दंड होना चाहिये था सो अच्‍छा हुआ कि वह अपनें आप यहां सै चला गया, उस्के चले जानें सै उस्के सब हक़ जाते रहे. अब कुछ दिन धक्के खानें सै उस्‍की अकल अपनें आप ठिकानें आ जायगी”

“और उसनें नालिश कर दी तो ?” लाला मदनमोहन घबराकर बोले.

“क्‍या होगा ? उस्‍के पास सबूत क्‍या है ? उस्‍का गबाह कौन है ? वह नालिश करैगा तो हम क़ानूनी पाइन्‍ट सै उस्‍को पलट देंगे परन्तु हम जान्‍ते हैं कि यहांतक नोबत न पहुँचेगी अच्‍छा ! उस्‍के पास आप की कोई सनद है ?”

See also  गंगा मैया भाग 4 | भैरव प्रसाद गुप्त

“कोई नहीं”

“तो फ़िर आप क्‍यों डरते हैं ? वह आप का क्‍या कर सक्ता है ?”

“सच है उस्‍को रुपे की गर्ज होगी तो वह नाक रगड़ता आप चला जायगा हम उस्‍के नीचे नहीं दबे वही कुछ हमारे नीचे दब रहा है”

“आप इस विषय मैं बिल्‍कुल निश्चिन्‍त रहैं”

“मुझको थोड़ासा खटका लाला ब्रजकिशोर की तरफ़ का है यह हरबात मैं मेरा गला घोटते हैं और मुझको तोतेकी तरह पिंजरे मैं बंद रक्खा चाहते हैं”

“वकीलों की चाल ऐसीही होती हैं. वह प्रथम धरती आकाशके कुल्‍लाबे मिलाकर अपनी योग्‍यता जताते हैं फ़िर दूसरे को तरह, तरह का डर दिखाकर अपना आधीन बनाते हैं और अन्त मैं आप उस्के घरबार के मालक बन बैठते हैं परन्तु चाहे जैसा फ़ायदा हो मैंतो ऐसी परतन्‍त्रता सै रहनें को अच्‍छा नहीं समझता”

“मेरा भी यही बिचार है मैं जोंजों दबता हूँ वह ज्‍याद: दबाते जाते हैं इसलिये अब मैं नहीं दबा चाहता”

“आपको दबनें की क्‍या ज़रूरत है ? जबतक आप इनको मुंहतोड़ जवाब न देंगे यह सीधे न होंगे, लाला ब्रजकिशोर आपके घर के टुकड़े खाखा कर बड़े हुए थे वह दिन भूल गए !”

लाला मदनमोहन नें बाबू बैजनाथ की नेकसलाहों का बहुत उपकार माना और वह लाला मदनमोहन सै रुख़सत होकर अपनें घर गए.

परीक्षा-गुरु – Pariksha Guru

परीक्षा गुरू हिन्दी का प्रथम उपन्यास था जिसकी रचना भारतेन्दु युग के प्रसिद्ध नाटककार लाला श्रीनिवास दास ने 25 नवम्बर,1882 को की थी। 

परीक्षा गुरु पहला आधुनिक हिंदी उपन्यास था। इसने संपन्न परिवारों के युवकों को बुरी संगति के खतरनाक प्रभाव और इसके परिणामस्वरूप ढीली नैतिकता के प्रति आगाह किया। परीक्षा गुरु नए उभरते मध्यम वर्ग की आंतरिक और बाहरी दुनिया को दर्शाता है। पात्र अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हुए औपनिवेशिक समाज के अनुकूल होने की कठिनाई में फंस जाते हैं। हालांकि यह जाहिर तौर पर विशुद्ध रूप से ‘पढ़ने के आनंद’ के लिए लिखा गया था। औपनिवेशिक आधुनिकता की दुनिया भयावह और अप्रतिरोध्य दोनों लगती है।

Download PDF (परीक्षा-गुरु प्रकरण -15प्रिय अथवा पिय् ?)

परीक्षा-गुरु प्रकरण -15 प्रिय अथवा पिय् ? – Pariksha-Guru Prakaran-15 : Priya athava Piya ?

Download PDF: Pariksha Guru Prakaran 15 – Priya athava Piya in Hindi PDF

Further Reading:

  1. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१ सौदागरकी दुकान
  2. परीक्षा-गुरु प्रकरण- २ अकालमैं अधिकमास
  3. परीक्षा-गुरु प्रकरण- ३ संगतिका फल
  4. परीक्षा-गुरु प्रकरण-४ मित्रमिलाप
  5. परीक्षा-गुरु प्रकरण-५ विषयासक्‍त
  6. परीक्षा-गुरु प्रकरण-६ भले बुरे की पहचान
  7. परीक्षा-गुरु प्रकरण – ७ सावधानी (होशयारी)
  8. परीक्षा-गुरु प्रकरण-८ सबमैं हां
  9. परीक्षा-गुरु प्रकरण-९ सभासद
  10. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१० प्रबन्‍ध (इन्‍तज़ाम)
  11. परीक्षा-गुरु प्रकरण-११ सज्जनता
  12. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१२ सुख दु:ख
  13. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१३ बिगाड़का मूल- बि वाद
  14. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१४ पत्रव्यवहा
  15. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१५ प्रिय अथवा पिय् ?
  16. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१६ सुरा (शराब)
  17. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१७ स्‍वतन्‍त्रता और स्‍वेच्‍छाचार.
  18. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१८ क्षमा
  19. परीक्षा-गुरु प्रकरण-१९ स्‍वतन्त्रता
  20. परीक्षा-गुरु प्रकरण – २० कृतज्ञता
  21. परीक्षा-गुरु प्रकरण-२१ पति ब्रता
  22. परीक्षा-गुरु प्रकरण-२२ संशय
  23. परीक्षा-गुरु प्रकरण-२३ प्रामाणिकता
  24. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२४ (हाथसै पै दा करनें वाले) (और पोतड़ों के अमीर)
  25. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२५ साहसी पुरुष
  26. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२६ दिवाला
  27. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२७ लोक चर्चा (अफ़वाह).
  28. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२८ फूट का काला मुंह
  29. परीक्षा-गुरु प्रकरण -२९ बात चीत.
  30. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३० नै राश्‍य (नाउम्‍मेदी).
  31. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३१ चालाक की चूक
  32. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३२ अदालत
  33. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३३ मित्रपरीक्षा
  34. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३४ हीनप्रभा (बदरोबी)
  35. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३५ स्तुति निन्‍दा का भेद
  36. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३६ धोके की टट्टी
  37. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३७ बिपत्तमैं धैर्य
  38. परीक्षा-गुरु प्रकरण-३८ सच्‍ची प्रीति
  39. परीक्षा-गुरु प्रकरण -३९ प्रेत भय
  40. परीक्षा-गुरु प्रकरण ४० सुधारनें की रीति
  41. परीक्षा-गुरु प्रकरण ४१ सुखकी परमावधि

लाला श्रीनिवास दास का उपन्यास परीक्षा गुरु

परीक्षा-गुरु प्रकरण -४१ सुखकी परमावधि : लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण ४१ सुखकी परमावधि Pariksha-Guru Prakaran-41 Sukha ki Parmavadhi परीक्षा-गुरु प्रकरण ४१ सुखकी परमावधि जबलग मनके बीच कछु स्‍वारथको रस होय ।। सुद्ध सुधा कैसे पियै ? परै बी ज मैं तोय ।। सभाविलास “मैंनें सुना है कि लाला जगजीवनदास यहां आए हैं” लाला मदनमोहननें पूछा. “नहीं इस्‍समय तो नहीं आए आपको कुछ संदेह हुआ होगा” लाला ब्रजकिशोरनें जवाब दिया.…

परीक्षा-गुरु प्रकरण-४० सुधारनें की रीति: लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण -४० सुधारनें की रीति Pariksha-Guru Prakaran-40 Sudharne ki Riti परीक्षा-गुरु प्रकरण -४० सुधारनें की रीति कठिन कलाहू आय है करत करत अभ्‍यास ।। नट ज्‍यों चालतु बरत पर साधे बरस छमास ।। वृन्‍द लाला मदनमोहन बड़े आश्‍चर्य मैं थे कि क्‍या भेद है जगजीवनदास यहां इस्समय कहां सै आए ? और आए भी…

See also  नीलकंठी ब्रज भाग 14 | इंदिरा गोस्वामी

परीक्षा-गुरु प्रकरण -३९ प्रेत भय: लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण -३९ प्रेत भय Pariksha-Guru Prakaran-39 Pret Bhay परीक्षा-गुरु प्रकरण -३९ प्रेत भय पियत रूधिर बेताल बाल निशिचरन सा थि पुनि ।। करत बमन बि कराल मत्त मन मुदित घोर धुनि ।। सा द्य मांस कर लि ये भयंकर रूप दिखावत ।। रु धिरासव मद मत्त पूतना नाचि डरावत ।। मांस भेद बस बिबस मन जोगन नाच हिं बिबिध गति ।। बीर जनन की…

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३८ सच्‍ची प्रीति : लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३८ सच्‍ची प्रीति Pariksha-Guru Prakaran- 38 Sachi Priti परीक्षा-गुरु प्रकरण-३८ सच्‍ची प्रीति धीरज धर्म्‍म मित्र अरु नारी आपतिकाल परखिये चारी तुलसीकृत लाला ब्रजकिशोर बाहर पहुँचे तो उन्‍को कचहरी सै कुछ दूर भीड़ भाड़सै अलग वृक्षों की छाया मैं एक सेजगाड़ी दिखाई दी. चपरासी उन्‍हें वहां लिवा ले गया तो उस्‍मैं मदनमोहन की स्‍त्री बच्‍चों…

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३७ बिपत्तमैं धैर्य: लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३७ बिपत्तमैं धैर्य Pariksha-Guru Prakaran-37 Biptarma Dhairya परीक्षा-गुरु प्रकरण-३७ बिपत्तमैं धैर्य प्रिय बियोग को मूढ़जन गिन‍त गड़ी हिय भालि ।। ताही कों निकरी गिनत धीरपुरुष गुणशालि ।। लाला ब्रजकिशोर नें अदालत मैं पहुँचकर हरकिशोर के मुकद्दमे मैं बहुत अच्‍छी तरह बिबाद किया. निहालचंद आदि के छोटे, छोटे मामलों मैं राजीनामा होगया. जब ब्रजकिशोर को…

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३६ धोके की टट्टी: लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३६ धोके की टट्टी Pariksha-Guru Prakaran-36 Dhoke ki Tatte परीक्षा-गुरु प्रकरण-३६ धोके की टट्टी बिपत बराबर सुख नहीं जो थो रे दिन होय इष्‍ट मित्र बन्‍धू जिते जान परैं सब कोय ।। लोकोक्ति. लाला ब्रजकिशोर के गये पीछे मदनमोहन की फ़िर वही दशा हो गई. दिन पहाड़ सा मालूम होनें लगा. खास कर डाक की बड़ी तला मली लगरही थी.…

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३५ स्तुति निन्‍दा का भेद: लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३५ स्तुति निन्‍दा का भेद Pariksha-Guru Prakaran-35 Stuti ninda ka Bhed परीक्षा-गुरु प्रकरण-३५ स्तुति निन्‍दा का भेद बिनसत बार न लागही ओछे जनकी प्रीति ।। अंबर डंबर सांझके अरु बारूकी भींति ।। सभाविलास. दूसरे दिन सवेरे लाला मदनमोहन नित्‍य कृत्‍य सै निबटकर अपनें कमरे मैं इकल्‍ले बैठे थे. मन मुर्झा रहा था किसी काम…

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३४ हीनप्रभा (बदरोबी): लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण-३४ हीनप्रभा (बदरोबी) Pariksha-Guru Prakaran-34 Hinprabha Badrobi परीक्षा-गुरु प्रकरण-३४ हीनप्रभा (बदरोबी) नीचन के मन नीति न आवै । प्रीति प्रयोजन हेतु लखावै ।। कारज सिद्ध भयो जब जानैं । रंचकहू उर प्रीति न मानै ।। प्रीति गए फलहू बिनसावै । प्रीति विषै सुख नैक न पावै ।। जादिन हाथ कछू नहीं आवै । भाखि…

परीक्षा-गुरु प्रकरण -३३ मित्रपरीक्षा : लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण -३३ मित्रपरीक्षा Pariksha-Guru Prakaran-33 Mitrapariksha परीक्षा-गुरु प्रकरण -३३ मित्रपरीक्षा धन न भयेहू मित्रकी सज्‍जन करत सहाय ।। मित्र भाव जाचे बिना कैसे जान्‍यो जाय ।। विदुरप्रजागरे आज तो लाला ब्रजकिशोर की बातोंमैं लाला मदनमोहन की बात ही भूल गये थे ! लाला मदनमोहन के मकान पर वैसी ही सुस्ती छा रही है केवल मास्‍टर शिंभूदयाल…

परीक्षा-गुरु प्रकरण -३२ अदालत: लाला श्रीनिवास दास

परीक्षा-गुरु प्रकरण -३२ अदालत Pariksha-Guru Prakaran-32 Adalat परीक्षा-गुरु प्रकरण -३२ अदालत काम परेही जानि ये जो नर जैसो होय ।। बिन ताये खोटो खरो गहनों लखै न कोय ।। बृन्‍द. अदालत में हाकिम कुर्सीपर बैठे इज्‍लास कर रहे हैं. सब अ‍हलकार अपनी, अपनी जगह बैठे हैं निहालचंद मोदी का मुकद्दमा हो रहा है. उस्‍की तरफ़ सै लतीफ…

Loading…

Something went wrong. Please refresh the page and/or try again.


Leave a comment

Leave a Reply