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सस्पेंस | प्रेमशंकर मिश्र

सस्पेंस | प्रेमशंकर मिश्र सस्पेंस | प्रेमशंकर मिश्र जब कभी सूरजसमय से पहले डूबता है दिशाएँइसी तरह अपना मुँहफेर लिया करती हैं।एक व्‍यूह बनता हैएक वात्‍याचक्र।उभरता भविष्‍यनपुंसक वर्तमानों के हाथोंघेर कर मारा जाता है।बजबजाहटों मेंउगे पनपेअसंख्‍य रासायनिक कुकुरमुत्‍तेमौसम की बगुवाई करते हैं।गांडीव निलंबित होता हैप्रतिबद्ध पार्थिव आदर्शआत्‍माहुति के लिए सन्‍नद्ध होता है।लगता हैसचमुचअंधकार की दृष्टि […]