बाँस | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
बाँस | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

बाँस में सूरज अपनी आग रखता है

वनस्पति शास्त्र
बाँस को सबसे ऊँची घास कहता है
मैं रहवास कहता हूँ बाँस को :
घर बाँस का
बाँस के बर्तन
बाँस की लाठी

यह काया भी
बाँस ही चढ़ेगी अंतिम बार

प्रीति में झूमा-झटकी करते
फाँस भी गड़ी
तो वह भी बाँस की
स्मृति में गड़ती है जो पोर-पोर

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अपने आसमान में
बाँस भर चढ़ गया सूरज
स्कूल जाने के लिए
ऐसे ही जाना समय

थोड़े-से कुछ हकलाते-
काँपते शब्द भी लिखा
तो कागद बन
बाँस ने ही दी उन्हें जगह।

इतिहास में बाँस का सबसे बेधक प्रयोग
चंदवरदाई ने किया
बापू की लाठी भी
थामे हुए है अहिंसा का ध्वज

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बाँस वह जो अँधेरे में सहारा बने
और छाया के लिए बने छप्पर

कागद पर लिखे शब्दों से ही जाना –
‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’
किसी तानाशाह का गढ़ा हुआ मुहावरा है
हर हमेश जिस पर थूकता रहता है
न्यायप्रिय

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