तनाव बहुत हैं | इसाक ‘अश्क’
तनाव बहुत हैं | इसाक ‘अश्क’

तनाव बहुत हैं | इसाक ‘अश्क’

तनाव बहुत हैं | इसाक ‘अश्क’

जीवन तो है
पर जीवन में
चारों ओर तनाव बहुत हैं।

हाथों में बंदूक
मनों में –
नफरत का तावा
जैसे जंगल
बोल रहा हो
बस्ती पर धावा

हलचल-तो है
भीड़ भाड़ भी
पर पथ में टकराव बहुत हैं।

See also  हवा | महेन्द्र भटनागर

चेहरों मढ़े
मुखौटे नकली
अधरों की भाषा,
अपनों तक
रह गई सिमट कर
सुख की परिभाषा

बाहर दिखें
भले एक पर
भीतर छिपे दुराव बहुत हैं।

Leave a comment

Leave a Reply