दोमुँहे साए | इसाक ‘अश्क’
दोमुँहे साए | इसाक ‘अश्क’

दोमुँहे साए | इसाक ‘अश्क’

दोमुँहे साए | इसाक ‘अश्क’

जिंदगी
अपनी कटी
अक्सर तनावों में।

एक प्रतिभा की
वजह –
           सारा शहर नाराज
हर समय
हम से रहा –
           हम पर गिराई गाज

दूब-भी
बनकर गड़ी है
कील पाँवों में।

दोस्ती के
नाम पर कुछ
           दो-मुँहे साए
हर समय
मन की मुँडेरों पर
           रहे छाए

साँस तक
लेना हुआ
दूभर अभावों में।

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