लड़की

उर्मिला शुक्ल

लड़की आज भी हैफूल की तरहकोमल और नाज़ुकबहुत संवेदनशील है वोमगर वह चाहती कि अबउसके दामन में भीऊग आएँ कुछ काँटेचाकू और खंजर भीवो चाहती है किधार दार हथियार मेंबदल जाए वोजंग में कितने जरूरी होते हैंहथियार जान चुकी है वोइसलिए 2. लड़की चाहती हैऐसा घरजिसमें होंबड़ी बड़ी खिड़कियाँजिससे होकरआ सकेताजी हवा औरढेर सी रोशनी…वह … Read more

रंग तिरंगे के

तिरंगा

थक गए हैं अबतिरंगे केतीनों रंगखो सा गया हैउसके रंगों कामहत्व हरा अबरहा नहीं प्रतीकखुशहाली काखुशहाली तो अबकैद हैगोदामों मेंऔर केसरिया तोनिष्कासित ही हैजीवन सेऔर श्वेतहाँ उसकी तो हमकरते हैं बातदेते हैं हमशांति का संदेशमगर…  ?और अकुलाउठे हैंये तीनों रंगअपने रंगहीनहो जाने पर

बाँस

उर्मिला शुक्ल

रिश्ते होते हैंबाँस की तरहझुकते हैं तोरचते हैं इतिहासतनाव धकेलता हैटूटन की ओर 2. मैं बाँस की हरी कमचीझुककर गढ़ती रही मैंजो जो चाहा तुमनेपर तुमने सोख लियामेरा सारा हरियरपन अबशिकायत है तुम्हें किमैं चुभती हूँ तुम्हें 3. बचाना ही होगाबाँस का हरियरपनबँचेगा बाँस तोहरीभरी रहेगी कलाएँकला का हरियरपनजब रंग देगाआदमी का अंतसतब आदमी भीहो … Read more

बरगद

उर्मिला शुक्ल

गाँव के द्वार परखड़ा बरगद औरघर के भीतरबैठी नीमदोनों हो गए हैं बूढ़े।आँखों से सूझतानहीं है अबफिर भीदेख रहे हैं राह उनकीजो छोड़ गएये घोसला।कभी न कभी तोलौटेंगे वेसोचता बरगदखड़ा है गाँव केद्वार परऔर घर मेंबैठी नीमजला रही है दियेउस राह परजिससे होकरलौटेंगे वे।

बूढ़ा पीपल

उर्मिला शुक्ल

गाँव की सीमा परअक्सर खड़ा मिलता थाएक बूढ़ा पीपल।सहकर शीत और तापकरता था रखवालीसारे गाँव की। गाँव में नहीं रहेअब लोगउसे छोड़ करचले गए सबफिर भी खड़ा है वो वहींउसी तरह उसकी आँखों में हैइक आस किकभी तो फिर… इसी आस मेंआज भी खड़ा हैगाँव का बूढ़ा पीपल

फूल सेमर के

उर्मिला शुक्ल

पतझर में खिलेफूल सेमर केकहते हैं मुझसेजिओ तुममेरी तरह। खींच लोपाताल सेजीवनरसखिलो औरखिलखिलाओमेरी तरह। बहुत आसान हैआँसू बहानादुख को गलाकरगुनगुनाओमेरी तरह।

नमक की अहमियत

उर्मिला शुक्ल

हम हैं कौनरहते हैं कैसेहमारी हँसी खुशीहमारे नाच गानेरीति नीति परबोलते हो तुम मगरनहीं जानते तुम हमेंहमारे मन औरहमारे जीवन कोसिर्फ मुर्गा लड़ानासल्फी पीना औरसरहुल तक हीसिमटा नहीं हैहमारा जीवनकितना मुश्किल हैभोजन की टोह मेंदिन दिन भर भटकनाबचना अपने आप कोजंगल में घुस आएदोपायों सेकुछ भी तो नहीं जानते तुमपर लिखते होबहुत कुछ किकितने मूर्ख … Read more

तिरंगा

हवा में लहराता तिरंगापूछ रहा है मुझसेआखिर कब तकढोऊँगा मैंइन रंगों भार ?कब तक फहराऊँगा मैंयूँ ही निरर्थक ?कब ? आखिर कब ?समझोगे तुमइन रंगों का महत्व ?

गढ़ रही है औरत

उर्मिला शुक्ल

एक औरतकूट रही है धानढेंकी में धान के साथकूट देना चाहती है वहसारी बाधाएँ…जो खड़ी हो जाती हैंअक्सर उसके सामने। एक औरत पछोर रही है अनाजभूसी की तरह… उड़ा देना चाहती है वहअपने सारे दुखों को एक औरत चला रही छेनीगढ़ना चाहती है वहपत्थर पर एक इबारत। एक औरत लिख रही हैअपनी कथाउसे नहीं बींधतेबान … Read more

इंद्रावती की बेटी

मैं बेटी इंद्रावती कीहँसती खेलती बहती रहीउसके साथ साथसल्फी मड़िया औरमहुआ संग झूमतीगाती मदमाती परमेरे थिरकते कदमों कोलग गई है नज़रटोना और धूर बान से भीगहरी और मारक नजरअब फुरसत ही कहाँ कि हम थिरकेंमादल की थाप परबचपन का पढ़ा पाठ भीअब आता नहीं कामध से धनुष औरत से तराजूदोनों ही हो चुके हैंबिलकुल ही … Read more