गाँव के द्वार पर
खड़ा बरगद और
घर के भीतर
बैठी नीम
दोनों हो गए हैं बूढ़े।
आँखों से सूझता
नहीं है अब
फिर भी
देख रहे हैं राह उनकी
जो छोड़ गए
ये घोसला।
कभी न कभी तो
लौटेंगे वे
सोचता बरगद
खड़ा है गाँव के
द्वार पर
और घर में
बैठी नीम
जला रही है दिये
उस राह पर
जिससे होकर
लौटेंगे वे।
![उर्मिला शुक्ल](https://www.hindiadda.com/wp-content/uploads/ha/2019/11/उर्मिला-शुक्ल.jpg)