साध

साध

मृदुल कल्पना के चल पँखों पर हम तुम दोनों आसीन। भूल जगत के कोलाहल को रच लें अपनी सृष्टि नवीन।। वितत विजन के शांत प्रांत में कल्लोलिनी नदी के तीर। बनी हुई हो वहीं कहीं पर हम दोनों की पर्ण-कुटीर।। कुछ रूखा, सूखा खाकर ही पीतें हों सरिता का जल। पर न कुटिल आक्षेप जगत के करने आवें … Read more

स्वदेश के प्रति

स्वदेश के प्रति

आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ, स्वागत करती हूँ तेरा। तुझे देखकर आज हो रहा, दूना प्रमुदित मन मेरा।। आ, उस बालक के समान जो है गुरुता का अधिकारी। आ, उस युवक-वीर सा जिसको विपदाएँ ही हैं प्यारी।। आ, उस सेवक के समान तू विनय-शील अनुगामी सा। अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा।। आशा की सूखी लतिकाएँ तुझको पा, फिर लहराईं। अत्याचारी की कृतियों … Read more

समर्पण

समर्पण

सूखी सी अधखिली कली है परिमल नहीं, पराग नहीं। किंतु कुटिल भौंरों के चुंबन का है इन पर दाग नहीं।। तेरी अतुल कृपा का बदला नहीं चुकाने आई हूँ। केवल पूजा में ये कलियाँ भक्ति-भाव से लाई हूँ।। प्रणय-जल्पना चिन्त्य-कल्पना मधुर वासनाएँ प्यारी। मृदु-अभिलाषा, विजयी आशा सजा रहीं थीं फुलवारी।। किंतु गर्व का झोंका आया यदपि गर्व वह था तेरा। उजड़ गई फुलवारी सारी बिगड़ गया सब … Read more

स्मृतियाँ

सुभद्रा कुमारी चौहान

क्या कहते हो? किसी तरह भी भूलूँ और भुलाने दूँ? गत जीवन को तरल मेघ-सा स्मृति-नभ में मिट जाने दूँ? शांति और सुख से ये जीवन के दिन शेष बिताने दूँ? कोई निश्चित मार्ग बनाकर चलूँ तुम्हें भी जाने दूँ? कैसा निश्चित मार्ग? हृदय-धन समझ नहीं पाती हूँ मैं वही समझने एक बार फिर क्षमा करो आती हूँ मैं। जहाँ तुम्हारे चरण, वहीं पर पद-रज … Read more

वीरों का कैसा हो वसंत

वीरों का कैसा हो वसंत

आ रही हिमालय से पुकार है उदधि गरजता बार बार प्राची पश्चिम भू नभ अपार; सब पूछ रहें हैं दिग-दिगंत वीरों का कैसा हो वसंत फूली सरसों ने दिया रंग मधु लेकर आ पहुँचा अनंग वधु वसुधा पुलकित अंग अंग; है वीर देश में किंतु कंत वीरों का कैसा हो वसंत भर रही कोकिला इधर तान मारू बाजे पर उधर गान है रंग और रण … Read more

विजयी मयूर

विजयी मयूर

तू गरजा, गरज भयंकर थी, कुछ नहीं सुनाई देता था। घनघोर घटाएँ काली थीं, पथ नहीं दिखाई देता था।। तूने पुकार की जोरों की, वह चमका, गुस्से में आया। तेरी आहों के बदले में, उसने पत्थर-दल बरसाया।। तेरा पुकारना नहीं रुका, तू डरा न उसकी मारों से। आखिर को पत्थर पिघल गए, आहों से और पुकारों से।। तू धन्य हुआ, हम सुखी हुए, सुंदर नीला … Read more

व्याकुल चाह

व्याकुल चाह

सोया था संयोग उसे किस लिए जगाने आए हो? क्या मेरे अधीर यौवन की प्यास बुझाने आए हो?? रहने दो, रहने दो, फिर से जाग उठेगा वह अनुराग। बूँद-बूँद से बुझ न सकेगी, जगी हुई जीवन की आग।। झपकी-सी ले रही निराशा के पलनों में व्याकुल चाह। पल-पल विजन डुलाती उस पर अकुलाए प्राणों की आह।। रहने दो अब उसे न छेड़ो, दया करो मेरे … Read more

वेदना

वेदना

दिन में प्रचंड रवि-किरणें मुझको शीतल कर जातीं। पर मधुर ज्योत्स्ना तेरी, हे शशि! है मुझे जलाती।। संध्या की सुमधुर बेला, सब विहग नीड़ में आते। मेरी आँखों के जीवन, बरबस मुझसे छिन जाते।। नीरव निशि की गोदी में, बेसुध जगती जब होती। तारों से तुलना करते, मेरी आँखों के मोती।। झंझा के उत्पातों सा, बढ़ता उन्माद हृदय का। सखि! कोई पता बता दे, मेरे भावुक सहृदय … Read more

राखी की चुनौती

राखी की चुनौती

बहिन आज फूली समाती न मन में। तड़ित आज फूली समाती न घन में। घटा है न झूली समाती गगन में। लता आज फूली समाती न बन में।। कही राखियाँ है, चमक है कहीं पर, कही बूँद है, पुष्प प्यारे खिले हैं। ये आई है राखी, सुहाई है पूनो, बधाई उन्हें जिनको भाई मिले हैं।। मैं हूँ बहिन किंतु भाई नहीं … Read more

राखी

राखी

भैया कृष्ण ! भेजती हूँ मैं राखी अपनी, यह लो आज। कई बार जिसको भेजा है सजा-सजाकर नूतन साज।। लो आओ, भुजदंड उठाओ इस राखी में बँध जाओ। भरत-भूमि की रजभूमि को एक बार फिर दिखलाओ।। वीर चरित्र राजपूतों का पढ़ती हूँ मैं राजस्थान। पढ़ते-पढ़ते आँखों में छा जाता राखी का आख्यान।। मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी जब-जब राखी भिजवाई। रक्षा करने दौड़ पड़ा वह राखी-बंद-शत्रु-भाई।। किंतु … Read more