वीरों का कैसा हो वसंत
वीरों का कैसा हो वसंत

आ रही हिमालय से पुकार 
है उदधि गरजता बार बार 
प्राची पश्चिम भू नभ अपार; 
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगंत 
वीरों का कैसा हो वसंत

फूली सरसों ने दिया रंग 
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग 
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग; 
है वीर देश में किंतु कंत 
वीरों का कैसा हो वसंत

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भर रही कोकिला इधर तान 
मारू बाजे पर उधर गान 
है रंग और रण का विधान; 
मिलने को आए आदि अंत 
वीरों का कैसा हो वसंत

गलबाँहें हों या कृपाण 
चलचितवन हो या धनुषबाण 
हो रसविलास या दलितत्राण; 
अब यही समस्या है दुरंत 
वीरों का कैसा हो वसंत

कह दे अतीत अब मौन त्याग 
लंके तुझमें क्यों लगी आग 
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग; 
बतला अपने अनुभव अनंत 
वीरों का कैसा हो वसंत

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हल्दीघाटी के शिला खंड 
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड 
राणा ताना का कर घमंड; 
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत 
वीरों का कैसा हो वसंत

भूषण अथवा कवि चंद नहीं 
बिजली भर दे वह छंद नहीं 
है कलम बँधी स्वच्छंद नहीं; 
फिर हमें बताए कौन हंत 
वीरों का कैसा हो वसंत

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