विजयी मयूर
विजयी मयूर

तू गरजा, गरज भयंकर थी, 
कुछ नहीं सुनाई देता था। 
घनघोर घटाएँ काली थीं, 
पथ नहीं दिखाई देता था।।

तूने पुकार की जोरों की, 
वह चमका, गुस्से में आया। 
तेरी आहों के बदले में, 
उसने पत्थर-दल बरसाया।।

तेरा पुकारना नहीं रुका, 
तू डरा न उसकी मारों से। 
आखिर को पत्थर पिघल गए, 
आहों से और पुकारों से।।

तू धन्य हुआ, हम सुखी हुए, 
सुंदर नीला आकाश मिला। 
चंद्रमा चाँदनी सहित मिला, 
सूरज भी मिला, प्रकाश मिला।।

विजयी मयूर जब कूक उठे, 
घन स्वयं आत्मदानी होंगे। 
उपहार बनेंगे वे प्रहार, 
पत्थर पानी-पानी होंगे।।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *