व्याकुल चाह
व्याकुल चाह

सोया था संयोग उसे 
किस लिए जगाने आए हो? 
क्या मेरे अधीर यौवन की 
प्यास बुझाने आए हो??

रहने दो, रहने दो, फिर से 
जाग उठेगा वह अनुराग। 
बूँद-बूँद से बुझ न सकेगी, 
जगी हुई जीवन की आग।।

झपकी-सी ले रही 
निराशा के पलनों में व्याकुल चाह। 
पल-पल विजन डुलाती उस पर 
अकुलाए प्राणों की आह।।

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रहने दो अब उसे न छेड़ो, 
दया करो मेरे बेपीर! 
उसे जगाकर क्यों करते हो? 
नाहक मेरे प्राण अधीर।।

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