स्वदेश के प्रति
स्वदेश के प्रति

आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ, 
स्वागत करती हूँ तेरा। 
तुझे देखकर आज हो रहा, 
दूना प्रमुदित मन मेरा।।

आ, उस बालक के समान 
जो है गुरुता का अधिकारी। 
आ, उस युवक-वीर सा जिसको 
विपदाएँ ही हैं प्यारी।।

आ, उस सेवक के समान तू 
विनय-शील अनुगामी सा। 
अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में 
कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा।।

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आशा की सूखी लतिकाएँ 
तुझको पा, फिर लहराईं। 
अत्याचारी की कृतियों को 
निर्भयता से दरसाईं।।

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