समय | मनीषा जैन

समय | मनीषा जैन

समय | मनीषा जैन समय | मनीषा जैन सड़कों पर चींटियों सेबेशुमार आदमीसब चुप्पअपने में गुमकोई नहीं बोलता किसी सेसारे हैं बेदम, भौचके, घबराए से कोई नहीं खोलता स्वयं कोसभी चले जा रहे हैं / पता नहीं कहाँ ?समय चलता हुआ तेजी सेठेलता हुआ आदमी कोफिर आदमी चला जाता है पता नहीं कहाँ ? कहते … Read more

वे सो जाती हैं | मनीषा जैन

वे सो जाती हैं | मनीषा जैन

वे सो जाती हैं | मनीषा जैन वे सो जाती हैं | मनीषा जैन क्यों आते हैं उत्सव?पूछती है मुन्नी अपनी माँ सेज्यादा आते है फेरी वालेउत्सव मेंज्यादा सजती हैं दुकानेंउत्सव मेंज्यादा सामान लाते है हाट सेउत्सव मेंमाँ, मुन्नी को बाजार ले जाकरदिखाती है उमंग लोगों कीउत्सव मेंफिर दोनों वापस आकरघर में दिया जलाकरखिड़की बंद … Read more

रोटी | मनीषा जैन

रोटी | मनीषा जैन

रोटी | मनीषा जैन रोटी | मनीषा जैन बसी रहती हैमेरी साँसों मेंरोटी की ताजा महककोई मुझसे मेरीरोटी छीन न लेइसलिए आँचल मेंछिपाकर रखती हूँऔर रात कोसिरहाने लगा लेती हूँ। 

रोज गूँथती हूँ पहाड़ | मनीषा जैन

रोज गूँथती हूँ पहाड़ | मनीषा जैन

रोज गूँथती हूँ पहाड़ | मनीषा जैन रोज गूँथती हूँ पहाड़ | मनीषा जैन रोज गूँथती हूँ मैंकितने ही पहाड़आटे की तरहबिलो देती हूँजीवन की मुश्किलेंदूध-दही की तरहबेल देती हूँरोज हीआकाश सी गोल रोटीप्यार की बारिश मेंमैं सब कुछ कर सकती हूँसिर्फ तुम्हारे लिए।

ये बच्चे | मनीषा जैन

ये बच्चे | मनीषा जैन

ये बच्चे | मनीषा जैन ये बच्चे | मनीषा जैन उन्हें नहीं मालूमबचपन का प्यारन ही माँ की लोरी वे नहीं जानतेफूल कैसे खिलते हैंवे फूलों के रंग के बारे में नहीं सोचतेवे तितली के विषय में नहीं सोचतेन ही शहद के बारे में वे दिनभर कूड़े में कुछ ढूँढ़ते रहते हैंऔर रात में कहीं … Read more

माँ की याद | मनीषा जैन

माँ की याद | मनीषा जैन

माँ की याद | मनीषा जैन माँ की याद | मनीषा जैन लेटा रहूँगाखेत की माटी मेंबान की खाट परतालाब, नदी के मुहानों पर झूलता रहूँगागाँव के झूलों परजैसे माँ की गोद मेंझूल रहा हूँये सब चीजेंमुझे माँ की याद दिलाती रहेंगी।

मैं खुश हूँ | मनीषा जैन

मैं खुश हूँ | मनीषा जैन

मैं खुश हूँ | मनीषा जैन मैं खुश हूँ | मनीषा जैन दंतकथाओं में रहती वह लड़कीउसने देखे थेपहाड़, नदी, जंगलऔर मछलियाँ भीऔर घुमेरदार रास्तेजंगल में भटकतेवह खाती थीजंगली बेर, जामुनऔर जंगल जलेबीकिसी बरगद के तलेवह सो रहती थीकुछ शब्द उड़करआ पहुँचे वहाँध्वनि तो रहती ही हैहवाओं मेंउसने शब्दों की बनाकर मालाडाल लिया गले मेंऔर … Read more

पहाड़ों में फूल | मनीषा जैन

पहाड़ों में फूल | मनीषा जैन

पहाड़ों में फूल | मनीषा जैन पहाड़ों में फूल | मनीषा जैन मेरे बच्चे !मैं अपने चेहरे कोदोनों हाथों से थामेतुम्हारे आने की कल्पना सेसिहर उठती हूँ तुम्हें भी मेरी तरहअपनी आशाओं कोढहते हुए देखना होगा लेकिन फिर भीमैं कर रही हूँतुम्हारा इंतजारएक बच्चे की तरहएक नई दुनियाबसाने के लिए शायद तुम पहाड़ों में फूल खिला सकोसमय … Read more

पहाड़ पर चिड़िया | मनीषा जैन

पहाड़ पर चिड़िया | मनीषा जैन

पहाड़ पर चिड़िया | मनीषा जैन पहाड़ पर चिड़िया | मनीषा जैन पहाड़ पर बैठ गई है वहशहर छोड़कर चली गई है वहपेड़ों का भीछोड़ रही है दोस्तानासुनती है नदी कोबहती है बस नदी के संग-संगकरती है बस जंगल से बातें नहीं बैठती अब दरवाजों परनहीं चहकती अबघर की मुँडेरों परचली गई है शहर से … Read more

प्यार की गुफाएँ | मनीषा जैन

प्यार की गुफाएँ | मनीषा जैन

प्यार की गुफाएँ | मनीषा जैन प्यार की गुफाएँ | मनीषा जैन हर साँस में रखूँगातुम्हारी महकतुम्हारे हाथों का स्पर्शतुम्हारे स्नेह का चुंबन और करता रहूँगा प्रतीक्षाअसीम समय तकउस दृष्टि कीजब तुम मुझे ले जाती थींप्यार की गुफाओं मेंऔर बचाकर रखती थींबुरी नजर से मुझे उन्हीं खोहों में बस जाऊँगाफिर से तुम्हारे लिए।