मैं खुश हूँ | मनीषा जैन
मैं खुश हूँ | मनीषा जैन

मैं खुश हूँ | मनीषा जैन

मैं खुश हूँ | मनीषा जैन

दंतकथाओं में रहती वह लड़की
उसने देखे थे
पहाड़, नदी, जंगल
और मछलियाँ भी
और घुमेरदार रास्ते
जंगल में भटकते
वह खाती थी
जंगली बेर, जामुन
और जंगल जलेबी
किसी बरगद के तले
वह सो रहती थी
कुछ शब्द उड़कर
आ पहुँचे वहाँ
ध्वनि तो रहती ही है
हवाओं में
उसने शब्दों की बनाकर माला
डाल लिया गले में
और चाटती फिरती रही
इमली के दाने
अच्छा हुआ
वह शब्दों को पहचान कर
शहर नहीं आई
नहीं तो पता नहीं क्या हश्र होता उसका?
मैं खुश हूँ वह जंगल में है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *