रोटी | मनीषा जैन रोटी | मनीषा जैन बसी रहती हैमेरी साँसों मेंरोटी की ताजा महककोई मुझसे मेरीरोटी छीन न लेइसलिए आँचल मेंछिपाकर रखती हूँऔर रात कोसिरहाने लगा लेती हूँ।