रोज गूँथती हूँ पहाड़ | मनीषा जैन
रोज गूँथती हूँ पहाड़ | मनीषा जैन
रोज गूँथती हूँ मैं
कितने ही पहाड़
आटे की तरह
बिलो देती हूँ
जीवन की मुश्किलें
दूध-दही की तरह
बेल देती हूँ
रोज ही
आकाश सी गोल रोटी
प्यार की बारिश में
मैं सब कुछ कर सकती हूँ
सिर्फ तुम्हारे लिए।