सौ-सौ चीते | अजय पाठक

सौ-सौ चीते | अजय पाठक

सौ-सौ चीते | अजय पाठक सौ-सौ चीते | अजय पाठक बची हुई साँसों पर आगेजाने क्या कुछ बीतेएक हिरण पर सौ-सौ चीते। चलें कहाँ तक, राह रोकतीसर्वत्र नाकामीकहर मचाती, यहाँ-वहाँ तकफैली सुनामीनीलकंठ हो गए जगत काघूँट-हलाहल पीते। सागर मंथन के अमृत परसबका दावा हैदेव-दानवों के अंतर कामहज दिखावा हैसबको बाँट-बाँट संपतियाँहाथ हमारे रीते। सूरज उगा, … Read more

समय तेंदुआ | अजय पाठक

समय तेंदुआ | अजय पाठक

समय तेंदुआ | अजय पाठक समय तेंदुआ | अजय पाठक समय तेंदुआ बैठे-बैठेघात लगाता है। बड़े धैर्य से करे प्रतीक्षाकोई तो आएआए तो फिर आकर कोईजिंदा मत जाएमार झपट्टा एक बार मेंधूल चटाता है। चाल तेज है, भारी जबड़ेबरछी से नाखूनहिंसा उसका नेम-धरम हैहिंसा है कानूनचीख निकलती, जब गर्दन परदाँत गड़ाता है। दाँव-पेंच में दक्ष … Read more

समकालीन | अजय पाठक

समकालीन | अजय पाठक

समकालीन | अजय पाठक समकालीन | अजय पाठक युगबोधी चतुराई सीखी समकालीन हुए। अंधेयुग में काम नहींआती है चेतनताबुद्धिमान हो जाने भर सेकाम नहीं चलता            पढ़े पेट का राम पहाड़ा           रीढ़विहीन हुए। अपने कंधे पर नाहकईमान नहीं ढोतेअब हम छप्पनभोग दबाकरदेर तलक सोते       … Read more

सुनो तथागत | अजय पाठक

सुनो तथागत | अजय पाठक

सुनो तथागत | अजय पाठक सुनो तथागत | अजय पाठक सुनो तथागत !बोधिवृक्ष परअब कौओं की काँव-काँव है। पंचशील अब कैद हो गयाहै पुस्तक मेंभिक्षुक-भंते समय काटतेहैं बक-झक मेंदेवदत्त से भरे हुए अबगाँव-गाँव हैं। शाक्यवंश ने अत्याचारीराजा जनमेंदया-मोह का भाव नहीं हैउनके मन मेंआँखों में अंगार होंठ परखाँव-खाँव है। मठ में लंपट साधक बनकरजमे हुए … Read more

दिन | अजय पाठक

दिन | अजय पाठक

दिन | अजय पाठक दिन | अजय पाठक ठेठ गँवइहा भद्दी-भद्दीगाली जैसे दिन। दिन ! जिसको अब वर्तमान काराहू डसता हैदुख-दर्दों का केतु खड़ा भुजपाशों मेंकसता हैआते-जाते याचक औरसवाली जैसे दिन। दिन जब उजियारों का हीपर्याय कभी थातभी तलक उसकी महता थीन्याय तभी थानिर्धन के दुःस्वप्न किसीबदहाली जैसे दिन। दिन जो अपनी भूख मिटानेरोटी माँगेदुनिया … Read more

दर्द | अजय पाठक

दर्द | अजय पाठक

दर्द | अजय पाठक दर्द | अजय पाठक दर्द डाकिया ले आया हैचिट्ठी अपने नामइस चिट्ठी में छिपे हुए हैंसंदेशे गुमनाम। किसने भेजा और कहाँ सेकुछ भी नहीं लिखाकुशलक्षेम का एक शब्द भीउसमें नहीं लिखा गूँगे अक्षर, आड़े तिरछेबीसों पूर्ण विराम। संबोधन में लिखा हुआ हैमेरे ‘परमसखा’तुम भूले, पर मैंने तुमकोहरदम याद रखा याद किया … Read more

जीना हुआ कठिन | अजय पाठक

जीना हुआ कठिन | अजय पाठक

जीना हुआ कठिन | अजय पाठक जीना हुआ कठिन | अजय पाठक सुलभ हुए संसाधनलेकिन जीना हुआ कठिन। जगे सवेरे, नींद अधूरीपलकों भरी खुमारीसंध्या लौटे, बिस्तर पकड़ाफिर कल की तैयारी भाग-दौड़ में आए होतेजीवन के पलछिन। रोटी का पर्याय हो गयाकंप्यूटर का माउसउत्सव का आभास दिलातासिगरेट, कॉफी हाऊस आँखों में उकताहट सपनेटूट रहे अनगिन। किश्तों … Read more

जीने का अभ्यास | अजय पाठक

जीने का अभ्यास | अजय पाठक

जीने का अभ्यास | अजय पाठक जीने का अभ्यास | अजय पाठक वादे खाकर भूख मिटातेआँसू पीकर प्यासहम करते हैं पेट काटकरजीने का अभ्यास। पन्ने-पन्ने फटे हुए हैंउधड़ी जिल्द पुरानीअपनी पुस्तक में लिक्खी हैंदुख की राम कहानीभूख हमारा अर्थशास्त्र हैरोटी है इतिहास। शिल्पी, सेवक, कुली, मुकउद्दमखूब हुए तो भृत्य,नून-तेल के बीजगणित कासमीकरण साहित्यचार दिवस कुछ … Read more

इलाहाबाद | अजय पाठक

इलाहाबाद | अजय पाठक

इलाहाबाद | अजय पाठक इलाहाबाद | अजय पाठक तन अमृतसर हुआ मगर मन रहा जहानाबाद। आँखें परख रहीं चतुराईचैकस कान हुएबुद्ध-अंगुलिमाल परस्परएक समान हुए           अब सारा अस्तित्व हो गया           तहस-नहस बगदाद। मायामृग से होड़ लगाएअग्निकुंड से तेजप्यास अबूझी जलन सहेजेपानी से परहेज           जीभ … Read more

अलकापुर | अजय पाठक

अलकापुर | अजय पाठक

अलकापुर | अजय पाठक अलकापुर | अजय पाठक अलकापुर तक जाकर लौटा मेघदूत-सा मन। पानी बरसा, बिजली चमकीघटाघोर अंधियारमेरुखंड में भोग रहा हैयक्ष विरह की मार             नाप रहा है प्राणप्रिया की           दूरी-सौ योजन। उज्जयिनी की स्मृतियों कोपल-पल याद करेवृक्षलता से, वल्लरियों सेवह संवाद करे   … Read more