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सौ-सौ चीते | अजय पाठक

सौ-सौ चीते | अजय पाठक सौ-सौ चीते | अजय पाठक बची हुई साँसों पर आगेजाने क्या कुछ बीतेएक हिरण पर सौ-सौ चीते। चलें कहाँ तक, राह रोकतीसर्वत्र नाकामीकहर मचाती, यहाँ-वहाँ तकफैली सुनामीनीलकंठ हो गए जगत काघूँट-हलाहल पीते। सागर मंथन के अमृत परसबका दावा हैदेव-दानवों के अंतर कामहज दिखावा हैसबको बाँट-बाँट संपतियाँहाथ हमारे रीते। सूरज उगा, […]