समय तेंदुआ | अजय पाठक
समय तेंदुआ | अजय पाठक
समय तेंदुआ बैठे-बैठे
घात लगाता है।
बड़े धैर्य से करे प्रतीक्षा
कोई तो आए
आए तो फिर आकर कोई
जिंदा मत जाए
मार झपट्टा एक बार में
धूल चटाता है।
चाल तेज है, भारी जबड़े
बरछी से नाखून
हिंसा उसका नेम-धरम है
हिंसा है कानून
चीख निकलती, जब गर्दन पर
दाँत गड़ाता है।
दाँव-पेंच में दक्ष बहुत है
घातक बड़ा शिकारी
कितना हो सामर्थ्य, सभी पर
यह पड़ता है भारी
चालाकी, चतुराई का फन
काम न आता है।
आदिकाल का महाशिकारी
अब तक भूखा है
पेट रिक्त है, कंठ अभी तक
इसका सूखा है
मास नोच लेता है सबका
हाड़ चबाता है।