Contents
नींद | अरुण कमल
नींद | अरुण कमल
धीरे-धीरे भारी हो रहा है
तुम्हारा शरीर
मेरी बाँह पर माथा तुम्हारा
ढल रहा है
नींद का शरीर
शीरे की तरह गाढ़ा
शहद की तरह भारी
डूबता चला जाता है
जल में
तल तक
नींद मनुष्य पर मनुष्य का
विश्वास है।
Contents
नींद | अरुण कमल
धीरे-धीरे भारी हो रहा है
तुम्हारा शरीर
मेरी बाँह पर माथा तुम्हारा
ढल रहा है
नींद का शरीर
शीरे की तरह गाढ़ा
शहद की तरह भारी
डूबता चला जाता है
जल में
तल तक
नींद मनुष्य पर मनुष्य का
विश्वास है।