नींद | अरुण कमल नींद | अरुण कमल धीरे-धीरे भारी हो रहा हैतुम्हारा शरीरमेरी बाँह पर माथा तुम्हाराढल रहा है नींद का शरीरशीरे की तरह गाढ़ाशहद की तरह भारीडूबता चला जाता हैजल मेंतल तक नींद मनुष्य पर मनुष्य काविश्वास है।