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स्वप्न | अरुण कमल

स्वप्न | अरुण कमल स्वप्न | अरुण कमल वह बार-बार भागती रहीज्यों अचानक किसी ने नींद में पुकाराकभी किसी मंदिर की सीढ़ी पर बैठी रही घंटोंऔर फिर अँधेरा होने पर लौटी कभी किसी दूर के संबंधी किसी परिचित के घरदो-चार दिन काटेकभी नैहर चली गईहफ्ते-माह पर थक कर लौटीहर बार मार खा कर भागीहर बार […]