सेवक | अरुण कमल
सेवक | अरुण कमल

सेवक | अरुण कमल

सेवक | अरुण कमल

लगता है अभी भी वह साँस मेरे भीतर घूम रही है
वही डूबती आँख मुझे पीछे से ताक रही है
और मेरे कदम तेज हो जाते हैं।
कितनी ही रातें इसी तरह मैंने जगकर बिताईं
उन बीमार, अपाहिज मरते हुए लोगों के साथ
जिनके लोग उन्‍हें छोड़ कहीं और चले गए,
या जो बगल के कमरे में सोते रहे सटकर
और सुबह मुझे रात भर सेवा के बदले पैसे थमाते
दरवाजे भिड़ा लिए धूप से आँखें बचाते,
और रात इतनी लंबी इतनी घनी अनहोनी होती है
मैंने पहली बार जाना उन मरीजों के सिरहाने बैठकर
दर्द से ऐंठते बार-बार कंठ भिगोते
किसी के इंतजार में ताकते आखिरी बूँद तक सूखते
कभी जब वे सो जाते खुले मुँह उनके दाँत चमकते रात में
और तब लगता मैं उनके कितना करीब आ गया हूँ,
जिसके माथे पर हाथ धरे तुम रात भर जगते हो
उसके लिए तुम्‍हीं हो सबसे करीबी,
जिसकी देह तुमने धोई-पोंछी उसके लिए तुम्‍हीं हो
रक्‍त के सबसे नजदीक, पुराने अखबारी कागज सी देह,
सुबह जब उठकर जाने लगता तब वे इस तरह देखते
जैसे उनका जहाज छूट रहा हो –
मुझे वो बुजुर्गवार कभी नहीं भूलता जिसके बच्‍चे विलायत में थे
और जो बिल्‍कुल अकेला अपने फ्लैट में
जौ के दानों से दिन गिन रहा था,
कोई वैसी बीमारी न थी, बस वह बूढ़ा और अकेला था
तभी मैं उसकी सेवा में आया
और धीरे-धीरे उसने मुझे घेर लिया,
वह कभी रोता न था न कभी मुझे कुछ करने को कहा
बस रात भर जगा रहता छज्‍जे में आरामकुर्सी पर बैठा
चाँद उसको प्रिय था और तारे
और लाल कनेल की गंध से भारी हवा
और कई प्‍याली चाय
वह मेरी गोद में मरा था शांत जैसे कोई फूल झड़ता है –
कोई भी काम मुझे मिल जाता तो यह सब छोड़ देता
पता नहीं कितनी हजार रातों से जग रहा हूँ
जरा और मरण के इतने पास,
एक बार तो एक आदमी ने मुझे ऐसे जकड़ लिया था जैसे
वह डूब रहा हो और मुझे भी खींच लेगा भँवर में
लगा जैसे मेरा छिलका उतर रहा हो और मैं भागा,
कई रोज मैं बच्‍चों के स्‍कूल के बाहर स्‍कूल टूटने के इंतजार में
खड़ा रहता कि वे अपनी कच्‍ची साँसों से मुझे धो दें –
उफ् मैं पेड़ होता बार-बार पत्तियाँ बदलता
कोई पक्षी अपने पुराने पंख झाड़ता
कोई पहाड़ी नदी सूखती भरती
कई बार मन में बाँधा कोई और काम खोजूँगा
स्‍कूल की दरबानी या बच्‍चों का रिक्‍शा हाँकूँगा
पर धीरे-धीरे ऐसा समय आया है
जब सारे रास्‍ते पानी में डूब जाते हैं
जब तुम्‍हारा सोचा कुछ नहीं होता
बस अंधड़ होता है और सेमल की रूई का फाहा
बस एक ही कोठरी बचती है पूरे शहर में खाली
श्‍मशान के पास।

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