मैं समेट रही हूँ …और सिमट रही हूँ
उदासियों की साँवली नदी
मेरे आखों के निचे
उतर आई है
उसकी जरा जरा सी लहरों
पर
मेरे सपने
डूबते उतरते है
हर घड़ी
मैं देख नही पाती
भीगती उँगलियों के
पोर पर लिखा होता है…
मैं समेट रही हूँ …और सिमट रही हूँ
उदासियों की साँवली नदी
मेरे आखों के निचे
उतर आई है
उसकी जरा जरा सी लहरों
पर
मेरे सपने
डूबते उतरते है
हर घड़ी
मैं देख नही पाती
भीगती उँगलियों के
पोर पर लिखा होता है…