मैंने जबपहली बार तुम्हें देखासमूची मुस्कुराती हुई तुममेरे भीतर मिसरी के ढेले सा घुल गईमैं उसे रोक नहीं सकता थाअब मेरे भीतरबसंत की लय परहर वक्तएक गीत बजता रहता है –प्रेम मानव संबंधों की मनोहर चित्रशाला है READ दफ्तर से लेनी है छुट्टी | यश मालवीय