शेष है केवल तबाही

शेष है केवल तबाही

दिन दहाड़ेफैलती ही जा रही कैसी सियाहीएक बादल क्या फटाअब शेष है केवल तबाही। गाँव, घर, बस्ती, शहरवीरानपुरवासी नदारदज्वार पानी कामिटाता जा रहाहर एक सरहदचौकसी शमशान कीकरता हुआ बूढ़ा सिपाही। याद की बुनियादकितनी और गहरीहो गई हैएक मानुस गंध थीवह किस लहर मेंखो गई हैबचे खाली फ्रेमबिखरे आलपिन टूटी सुराही। है सभी कुछ सामनेपर कुछ … Read more

लिख रहा है सूर्य

लिख रहा है सूर्य

अंधतम के वक्ष पर जोशामियाने-सी तनी हैवह सुबह की रोशनी है। गर्त में डूबी समय कीयातना सदियों पुरानीलिख रहा है सूर्य धरती परनिराली ही कहानीहवाओं में दूर तक फैलीसृजन की सनसनी है। दूर घटता जा रहा हैव्योम में फैला कुहासाहो रही उद्दाम-साआलोक की व्याकुल पिपासाज्योति की किन्नर कथाओं सेलदी हर अलगनी है। धूप की सुकुमार … Read more

ले रहा हूँ होड़

ले रहा हूँ होड़

ले रहा हूँ आज भीअपने समय से होड़,त्रासदी यह है कि मैंघोषित हुआ रणछोड़। कर रहा विपरीत धारा सेसतत संघर्षछू नहीं पाता मुझेउत्कर्ष या अपकर्षरास्ते दुर्गम भयानकरास्तों के मोड़। सब चले मेरे समांतरराग हो या आगमोह हो, विद्रोह होअनुरक्ति या बैरागयह पराभव है कियह उपलब्धि है बेजोड़। चख नहीं पाया छरहरीसफलता का स्वादघेर भी पाया … Read more

यह महागाथा

यह महागाथा

तीर्थ यात्रा पर गए थेजो बहुत पहलेसगुन पंछी लौटकरघर आ रहे होंगे। राम जानेकब सुरक्षित वापसी होगीया भँवर मेंजिंदगी उनकी फँसी होगीस्वजन मन को किस तरहसमझा रहे होंगे। कहीं पर माता-पिताछोटे बहन-भाईकहीं पर अर्द्धांगिनीबेचैन अकुलाईराह तकते हुए सबघबरा रहे होंगे। तीर्थ धामों से मिलीखबरें भयानक हैंजल कथाओं से उगेदारुण कथानक हैंकौन से संकट कहाँमँडरा रहे … Read more

महामत्स्य के मुँह में मछली

महामत्स्य के मुँह में मछली

छीज गई है हर परंपराबदला जीवन का मुहावरा। कल तक सब था, झूठ हो गयातलवारों की मूठ हो गयाचीलों का अधिवास बना हैकोई शापित ठूँठ हो गयापेड़ कभी था यह हरा भरा। चहक रहा था एक कबूतरआँगन खिड़की छत मुंडेर परअब कोने में बैठा गुमसुमसहमा-सहमा, कातर-कातररहता है दिन भर डरा-डरा। खुला नया आयाम छंद कालिये … Read more

भूले हुए आख्यान में हूँ

भूले हुए आख्यान में हूँ

शहर में रहकर, अजब वीरान में हूँ,आजकल मैं एक रेगिस्तान में हूँ। सरस्वती उम्मीदआशंकित हुआ मनखोजता हैढूँढ़ रिश्तों में हरापनथा कभी संदर्भ मैं जीवित क्षणों काकिंतु अब भूले हुए आख्यान में हूँ। उग रही हैकंकरीटों की इमारतथी वहाँ कलपेड़ पौधों की इबारतमिट गई सारी इबारत स्लेट पर सेआजकल खोई हुई पहचान में हूँ। चुक गई … Read more

बिंब हूँ टटका

बिंब हूँ टटका

इस समय की डाल पर मैंफूल-सा अटकामैं क्षितिज पर रश्मियों का बिंब हूँ टटका। सह रहा हूँ मार मैंविपरीत मौसम कीयाद आती है कथाअपने पराक्रम कीमैं उपग्रह था कभी अब राह से भटका। यह समूची सृष्टियह ब्रह्मांड मेरा हैपर कभी लगता मुझेयह तंग घेरा हैकहाँ से लाकर मुझे किसने यहाँ पटका। भूमि से आकाश तकफैला … Read more

बादलों में घिरी सूर्य की भूमिका

बादलों में घिरी सूर्य की भूमिका

एक उचटी हुई नींद का स्वप्न था,जागरण में न जाने कहाँ खो गया। विश्व बाजार के इस घटाक्षेप मेंकामनाएँ बिकीं, आचरण भी बिका,आज संदेह के बादलों में घिरीजगमगाते हुए सूर्य की भूमिका,स्नेह सौहार्द की उर्वरा भूमि मेंकौन ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, भय बो गया। आस्थाएँ हिलीं, सत्यनिष्ठा हिलीप्यार, विश्वास, श्रद्धा समर्पण हिले,गीत के नाम पर, खुरदरे … Read more