शेष है केवल तबाही
दिन दहाड़ेफैलती ही जा रही कैसी सियाहीएक बादल क्या फटाअब शेष है केवल तबाही। गाँव, घर, बस्ती, शहरवीरानपुरवासी नदारदज्वार पानी कामिटाता जा रहाहर एक सरहदचौकसी शमशान कीकरता हुआ बूढ़ा सिपाही। याद की बुनियादकितनी और गहरीहो गई हैएक मानुस गंध थीवह किस लहर मेंखो गई हैबचे खाली फ्रेमबिखरे आलपिन टूटी सुराही। है सभी कुछ सामनेपर कुछ … Read more