समर्पण के नाम संबोधन | पुष्पिता अवस्थी

समर्पण के नाम संबोधन | पुष्पिता अवस्थी

समर्पण के नाम संबोधन | पुष्पिता अवस्थी समर्पण के नाम संबोधन | पुष्पिता अवस्थी अपनी फड़फड़ाहटसौंप देती है पक्षियों को अपना तापलौटा देती है सूरज को अपना आवेगदे देती है हवाओं को अपनी प्यासभेज देती है नदी के ओठों को अपना अकेलापनघोल देती है एकांत कोने में फिर भीहाँ… फिर भीउसके पासयह सब बचा रह … Read more

मैं जानती हूँ | पुष्पिता अवस्थी

मैं जानती हूँ | पुष्पिता अवस्थी

मैं जानती हूँ | पुष्पिता अवस्थी मैं जानती हूँ | पुष्पिता अवस्थी मैं जानती हूँ तुम्हेंजैसेफूल जानता है गंधमैं जानती हूँ तुम्हेंजैसेपानी जानता है अपना स्वादमैं जानती हूँ तुम्हेंजैसेधरती जानती है जल पीनामैं जानती हूँ तुम्हेंजैसेफूल जानता है अपना फल, अपना बीजमैं जानती हूँ तुम्हेंजैसेहवाएँ पहचानती हैं मानसूनी बादलबादल जानते हैं धरती की प्यासमैं जानती … Read more

प्रणय-मोक्ष | पुष्पिता अवस्थी

प्रणय-मोक्ष | पुष्पिता अवस्थी

प्रणय-मोक्ष | पुष्पिता अवस्थी प्रणय-मोक्ष | पुष्पिता अवस्थी प्रेम –रंग नहीं,पानी नहीं,उजाला नहीं,अँधेरा नहीं,ताप नहीं,शीतलता नहीं,सुगन्ध है –सिर्फ अनुभूति भर के लिए प्रेम –प्रकृति नहीं,सृष्टि नहीं,समुद्र नहीं,सूर्य नहीं,चन्द्र नहीं,पवन नहीं,सौन्दर्य है –सिर्फ सुख के लिए प्रेम –साँस नहीं,धड़कन नहीं,चेतना नहीं,स्पर्श नहीं,स्पन्दन नहीं,अभिव्यक्ति नहीं,देह नहीं –सिर्फ आत्मा हैपरम तृप्ति और मोक्ष के लिए।

नरम खामोशी | पुष्पिता अवस्थी

नरम खामोशी | पुष्पिता अवस्थी

नरम खामोशी | पुष्पिता अवस्थी नरम खामोशी | पुष्पिता अवस्थी प्रेमअनुभूतियों का अन्वेषक हैप्रेमअपने जीवन मेंरचा है – नया जीवन खोजता है –स्नेह-सृजन के नूतन स्रोत प्रेमानुभूति का तरल-पथअभिव्यक्ति की नरम खामोशीअनुभूति का मौनानंदअनकहा –पर भीतर-ही-भीतरसबकुछ कहता हुआजिसे पहली बार सुनती है – आत्माऔर समझ पाती है –प्रेम-सुख का अर्थजोदेह से उपजता हैदेह से परे … Read more

धूप-ताप | पुष्पिता अवस्थी

धूप-ताप | पुष्पिता अवस्थी

धूप-ताप | पुष्पिता अवस्थी धूप-ताप | पुष्पिता अवस्थी धूपनिचोड़ लेती हैदेह के रक्त से पसीना माटी से बीजबीज से पत्तेपत्ते से वृक्षऔर वृक्ष सेनिकलवा लेती है – धूपसबकुछ धूपसबकुछ सहेज लेती हैधरती सेउसका सर्वस्वऔर सौंप देती है – प्रतिदान मेंअपना अविरल स्वर्णतापकि जैसे –प्रणय का हो यह अपनाविलक्षण अपनापन

देह का निर्गुण और सगुण | पुष्पिता अवस्थी

देह का निर्गुण और सगुण | पुष्पिता अवस्थी

देह का निर्गुण और सगुण | पुष्पिता अवस्थी देह का निर्गुण और सगुण | पुष्पिता अवस्थी देह की देहरी परप्रेमसुख बनकर आता हैमन देह की खातिरह्दय के आले परअबुझ दीया धर जाता हैदेह केअंतर्मन की भित्ति परटाँग देता हैकई स्वप्न कैलेंडरकैलेंडर की छाती परहोते हैं प्रणय के जीवंत छाया चित्रगतिशील चलचित्रपग-तल में होता है जिनकेवर्ष-चक्र … Read more

चिट्ठी से… | पुष्पिता अवस्थी

चिट्ठी से... | पुष्पिता अवस्थी

चिट्ठी से… | पुष्पिता अवस्थी चिट्ठी से… | पुष्पिता अवस्थी चिट्ठियाँदुःख पूछने आएँगीशब्दआँसू पोंछेंगेआँखेंप्रेम के बैठने के लिएशहर मेंकोई पार्क…कोई रेस्तराँकोई प्लेटफॉर्म…कोई बेंच…कोई धँसा ढाबा…कोना-अँतरा जैसाठियाँ नहीं खोजेंगीसिर्फ देखेंगीकैलेंडरतारीखेंऔर डाक विभाग की तत्परता चिट्ठियाँसमय पार लगाएँगीजिनकेशब्द कभी ओंठ की तरहसिहरेंगे… काँपेंगे… सूखेंगेशब्द कभी आह से थकी-मुँदीआँख की तरह चुप मिलेंगेपढ़कर आँखें जानेंगीगीला दुःखकसकता तापअकेलेपन का … Read more

अमृत कुंड | पुष्पिता अवस्थी

अमृत कुंड | पुष्पिता अवस्थी

अमृत कुंड | पुष्पिता अवस्थी अमृत कुंड | पुष्पिता अवस्थी प्रेम के हठ योग मेंजाग्रत है –प्रेम की कुण्डलिनी रन्ध्र-रन्ध्र मेंसिद्ध है – साधना पोर-पोरबना है – अमृत-कुंडप्रणय-सुषमाप्रस्फुटित है – सुषुम्ना नाड़ी मेंकि देह मेंप्रवाहित हैं – अनगिनत नदियाँ। एकात्म के लिए अधर चुप रहते हैंआँखें खुलीपरमौन आत्मा साधती है –अलौकिक आत्म-संवादपर से एकात्म के … Read more

अनमिट परछाईं | पुष्पिता अवस्थी

अनमिट परछाईं | पुष्पिता अवस्थी

अनमिट परछाईं | पुष्पिता अवस्थी अनमिट परछाईं | पुष्पिता अवस्थी सूर्य कोसौंप देती हूँ तुम्हारा ताप नदी कोचढ़ा देती हूँ तुम्हारी शीतलताहवाओं कोसौंप देती हूँ तुम्हारा वसंतफूलों कोदे आती हूँ तुम्हारा अधर वर्णवृक्षों कोतुम्हारे स्पर्श की ऊँचाईधरती कोतुम्हारा सोंधापनप्रकृति कोसमर्पित कर आती हूँ तुम्हारी साँसों की अनुगूँजवाटिका मेंलगा आती हूँ तुम्हारे विश्वास का अक्षय वटतुम्हारी … Read more