धूप-ताप | पुष्पिता अवस्थी
धूप-ताप | पुष्पिता अवस्थी
धूप
निचोड़ लेती है
देह के रक्त से पसीना
माटी से बीज
बीज से पत्ते
पत्ते से वृक्ष
और वृक्ष से
निकलवा लेती है – धूप
सबकुछ
धूप
सबकुछ सहेज लेती है
धरती से
उसका सर्वस्व
और सौंप देती है – प्रतिदान में
अपना अविरल स्वर्णताप
कि जैसे –
प्रणय का हो यह अपना
विलक्षण अपनापन