हिमयुग | मुकेश कुमार हिमयुग | मुकेश कुमार आज भी हिमयुग में जमी हुई है पृथ्वीतापहीन सूर्य असमर्थ है पिघला पाने में बर्फजाने कब जीवित होंगे समय के जीवाश्मविकास के कितने चरणों को पार करके जीवन लेगा मानव रूपसभ्यताएँ कब पहुँचेंगी उस मोड़ परजहाँ खिलते हैं सूरज निरभ्र आकाश मेंमुझसे सहा नहीं जाता ये विलंबित […]
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शब्द | मुकेश कुमार
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लोहा | मुकेश कुमार
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पहाड़ पर बादल | मुकेश कुमार
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