मुट्ठी | मुकेश कुमार
मुट्ठी | मुकेश कुमार
तितलियों से लेकर जंगल पहाड़ों तक
परियों से लेकर चाँद तारों तक
सब कुछ था नन्हीं सी बंद मुट्ठी में
फिर जाने क्या पकड़ने दौड़े कि
फिसल गई दुनिया मुट्ठी से
रह गई उम्मीदों और सपनों की रेत
चिपचिपाते पसीने के साथ
खुली हुई हथेली पर।