हिमयुग | मुकेश कुमार
हिमयुग | मुकेश कुमार

हिमयुग | मुकेश कुमार

हिमयुग | मुकेश कुमार

आज भी हिमयुग में जमी हुई है पृथ्वी
तापहीन सूर्य असमर्थ है पिघला पाने में बर्फ
जाने कब जीवित होंगे समय के जीवाश्म
विकास के कितने चरणों को पार करके जीवन लेगा मानव रूप
सभ्यताएँ कब पहुँचेंगी उस मोड़ पर
जहाँ खिलते हैं सूरज निरभ्र आकाश में
मुझसे सहा नहीं जाता ये विलंबित शीतकाल
अनगिनत अणु विस्फोटों के ताप से प्रज्ज्वलित मेरी देह
भस्म हो रही है
संचित हो जाएगी एक दिन हिमशिलाओं के नीचे
ज्वालामुखी बनकर

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *