चट्टानों में भी
बहती है
जीवन की रसधार
आकर यहाँ
दृष्य यह देखा
पहली-पहली बार।
कभी पढ़ा था
इन्हीं पत्थरों ने
जन्मी थी आग
पहली-पहली बार
आज सुन पाया
आदिम राग
लगा कि सहसा
रविशंकर का
बजने लगा सितार।
लगा कि जैसे
रास रचा है
कालिंदी के तीर
फूले फूल कदंब
नाचते
ब्रज के कुंज-कुटीर
‘निरगुन –
कौन देश को वासी’
पूछे मलय बयार।
मेघदूत
पढ़ रहीं शिलाएँ
ऐसा हुआ प्रतीत
प्रेम बड़ा है, किंतु
प्रेम से बड़ा
प्रेम का गीत
यक्ष-प्रिया की
अलका नगरी
दिखी यहाँ साकार।