शब्द !
शब्द !

शब्द हैं हम,
लौट आएँगे तुम्हारे पास
            तुम आवाज तो दो।

लौट आता ज्यों
अँधरों में उजाला
दीप जलने पर
लौट आते
नीड़ में पंछी
कि जैसे साँझ ढलने पर
            नाप लेंगे हम
            धरा-आकाश –
            तुम परवाज तो दो।

जेठ की हो
धूप, अथवा पूस
की ठिठुरन भरी हो रात
छाँव और अलाप होकर
हाँ, हमीं होंगे
तुम्हारे साथ
गीत बनकर होंठ पर
            होंगे, करो विश्वास,
            तुम वह साज तो दो।

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चुप रहे जो तुम
तुम्हारी बात
खुलकर हमीं बोलेंगे
बहुमुखी इस युद्ध में
हर मोरचे पर
संग हो लेंगे
            जाएगी अंजाम तक
            हर साँस
            तुम आगाज तो दो।

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