परिंदे कम होते जा रहे हैं
परिंदे कम होते जा रहे हैं

परिंदे कम होते जा रहे हैं
शहरों में तो पहले नहीं थे
अब गाँवों की यह हालत है कि
जो परिंदे महीने भर पहले
पेड़ों पर दिखाई देते थे
वे अब स्वप्न में भी नही दिखाई देते

सारे जंगल झुरमुट
उजड़ते जा रहे हैं
कहाँ रहेंगे परिंदे

शिकारी के लिए और भी सुविधा है
वे विरल जंगलों में परिंदों को
खोज लेते हैं

See also  बादलों के टुकड़ों में उभरते चित्र | ए अरविंदाक्षन

घोंसले बनने की परिस्थितियाँ नहीं हैं
आसपास
परिंदे सघन जंगलों की ओर
उड़ते जा रहे हैं
खोज रहे हैं घने घने पेड़

ऐसे आदमी भी कम होते
जा रहे हैं गाँवों में

वे उड़ते जा रहे हैं
कलकत्ता-बंबई-दिल्ली
अपने चारों की तलाश में

गाँव में उनकी स्त्रियाँ हैं
जिनके घोंसले खतरे में हैं

See also  उदासी

Leave a comment

Leave a Reply