कहाँ से | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
कहाँ से | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

कहाँ से चुराते हैं – फूल,
ताजगी और गंध
लड़कियाँ यौवन-लज्जारुण हँसी
और इंतजार का इतना धीरज
शब्दो, कहाँ से ढूँढ़ लेते हो तुम
अपने लिए इतने सुंदर युग्म
हम भटकते हैं दिन-रात
एक पद्य से दूसरे पद्य
एक वाक्य से दूसरे वाक्य
पर कहाँ लिख पाते हैं –
एक सुंदर कविता
जिसमें हमें सुंदर जीवन मिल सके।

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