दृश्य
दृश्य

दिन बिताता हुआ अपनी चार टाँगों पर
रात में जानवर निकल आता है बाहर
पिछली दो टाँगों पर,
अपने अगले पंजों पर वह उठाये होता है कपड़े की गुड़िया
ताकि संदेह न हो लोगों को उसके जानवर होने पर।

दुकानों, सिनेमाघरों और रिहायशी मकानों से होता हुआ
उठाये रखता है जानवर कपड़े की गुड़िया को
शो रूमों के काँच पर
चमकता है उसका भारी प्रतिबिंब
जिसे देखने से स्‍वयं डर लगता है उसे।

See also  एक इंच

कपड़े की गुड़िया को दिखती हैं असली गुड़ियाएँ
अपने हाथों में जिन्‍होंने
उठाये रखा होता है एक एक जानवर,
गुड़ियाओं को डर नहीं लगता अपने प्रतिबिंबों से
उन्‍हें तंग नहीं करती प्‍लास्टिक की याददाश्‍त।

बीत जायेगी रात, फुर्सत नहीं होगी याद करने की
कि हमारे भीतर मर रही हैं जीवित कोशिकाएँ
जिनमें बंद हैं जानवर, गुड़ियाएँ और लोग
और हम मर रहे होते हैं
दूसरों के भूले पिजरों में।

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