जंगल से जलते बुझते नगर मेरे नाम क्यूँ
जंगल से जलते बुझते नगर मेरे नाम क्यूँ

जंगल से जलते बुझते नगर मेरे नाम क्यूँ
मुमकिन नहीं है फिर भी मफ़र मेरे नाम क्यूँ

अय्याम जिस में रहते हो आसेब की तरह
ख़्वाबों के ख़ाक-ख़ाक खँडहर मेरे नाम क्यूँ

हमसाए में हजर न कहीं साय-ए-शज़र
जामिद जनम-जनम का सफ़र मेरे नाम क्यूँ

मफ़रूर मुल्ज़िमों सा मसाफ़त में मह्र हूँ
काले समुन्दरों का सफ़र मेरे नाम क्यूँ

See also  उनका दर्द मेरी जुबान | दिविक रमेश

शोले की आरजू में करूँ रक़्स [ उम्र भर
उस ने किया लिबास-ए-शरर मेरे नाम क्यूँ

Leave a comment

Leave a Reply