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आदमी के भीतर का आदमी हारे

आदमी के भीतर का आदमी हारेजी रहा समाज में हर कोई मन मारे नफरत की आँधी पुरजोर इस कदरघेर रहीं सूरज के नैनों चढ़करऐसे मौसम में हैं धुंधों के पहरेधूल झुकी आँखों हैं, कान पड़े बहरेभूचाली शाखों में नीड़ बेसहारेसमरसता दुबके काँपे डर के मारे। बीजों से शूल उगें, माटी से सरपतरत्नजड़ित काया की आभा […]