एक रचाव है नदी
एक रचाव है नदी

पन्ने लहरों के बदलती हुई
एक किताब है नदी।

किनारों को आँखों से बाँधती
उतरती है पहाड़ों से
चिड़िया के पंखों को सहेजती
मन बसी है कहारों के
हवाओं में रंग घोलती हुई
एक लगाव है नदी।

महाभारत से निकली रोकती
भीष्म के उन वाणों को
खूब आँखों से भी तेज करती
रहती है जो कानों को
गहनों को फिर से तोलती हुई
एक जवाब है नदी।

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साँसों में गीतों को गूँथेगी
भरती कविता की जगहें
बचपन के मन को सँभालती सी
छूती कई अतल सतहें
अनबोली-सी भी बोलती हुई
एक रचाव है नदी।

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