धन्यवाद चींटियों धन्यवाद!! | अभिज्ञात
धन्यवाद चींटियों धन्यवाद!! | अभिज्ञात

धन्यवाद चींटियों धन्यवाद!! | अभिज्ञात

धन्यवाद चींटियों धन्यवाद!! | अभिज्ञात

कई दिनों बाद यकायक मुझे पता चला
मेरे लिखे पर बहुत बड़ी दावेदारी उन चीटियों की है
जो आराम से रह रही थीं मेरे कंप्यूटर के की-बोर्ड में
और मैं नजर गड़ाए रहता था उनकी कारगुजारियों से बेपरवाह
कंप्यूटर के स्क्रीन पर

जबकि में लिख रहा था दुनिया-जहान पर
इस तरह जैसे कि मैं अकेला और केवल मैं
सोच रहा था तमाम गंभीर मसलों पर
और जैसे कि मेरा सोचना ही हल कर देगा मसलों को
और उन्हें लिख देना कोई बहुत बड़ी कारवाई हो अमल से मिलती-जुलती
या फिर उससे भी अहम

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सहसा मुझे दिख गई चींटी
और फिर मैंने उत्स जानना चाहा
आखिर कहाँ से आ गई चींटी कंप्यूटर के स्क्रीन पर
कहीं तो होगा उनका कुनबा
मैंने अनुभव से जाना है
कभी अकेली नहीं होती चींटी
आदमी के अकेलेपन को मुँह चिढ़ाती हुई
चींटी का चेहरा हमारे पूर्वजों से कितना मेल खाता है आज भी

मैंने खोज डाला टेबिल
जिस पर था कंप्यूटर
नहीं मिली वैसी ही कोई दूसरी चींटी
जैसी एक थी
हाँ वैसी ही
न जाने क्यों मुझे हर चींटी एक जैसी ही लगती है
सौ चीटियों में हर एक लगती है एकदम दूसरे जैसी
जैसे पेड़ की एक पत्ती का चेहरा मिलता है दूसरे से
आदमी का भी मिलता होगा कभी
फिलहाल तो नहीं
और खोज के उपक्रम में नजर गई की-बोर्ड पर
ब्लैक की बोर्ड पर लाल-लाल छोटी चींटियाँ
न जाने कब से बना रखा था उन्होंने की-बोर्ड को अपना ठिकाना
मैंने बहुत सोचा आखिर क्या कर रही थीं वे की-बोर्ड में
जबकि बाहर बेहद गर्मी पड़ रही थी क्या उन्हें यहाँ मिल रही थीं ठंडक
जो कंप्यूटर में टाइप होते हुए अक्षरों से पहुँच रही थी उन तक

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क्या उन्हें भली लग रही थी वह थरथराहट और वह लय और ताल
जो आदमी को आदमी से जोड़ने वाले शब्दों के ढाले जाने के उपक्रम में पैदा होती है

क्या उन्हें भली लग रहा थी उन उँगलियों की बेचैनी जो
शब्द में जान पैदा करने की कोशिश में उठती हैं
या वे लिख रही थी संवेदना के इतिहास में अपना योगदान
मेरे की-बोर्ड से मेरे शब्दों की फाँक में
या फिर मैंने नहीं स्वयं उन्होंने लिखवाई हों वे तमाम इबारतें
जिनके बारे में मैं सोच रहा था निकल रही हैं मेरे मन के किसी तहखाने से

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क्या आदमी के काम में चींटियों ने हाथ बँटाने की ठान ली थी

मेरे हाथ, मेरी उँगलियों और पूरी मनुष्य जाति की ओर से
धन्यवाद! चींटियों धन्यवाद!!

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