“माँ मैंने कह दिया, मैं यह घर नहीं छोड़ूँगी।”

“क्यों नहीं छोड़ेगी और कैसे नहीं छोड़ेगी…?”

“क्योंकि यह मेरा भी घर है।”

“यह किसने कह दिया तुझ से…?”

“यह मेरे डैड का घर है…!”

“मैं तुझे यहाँ नहीं रहने दूँगी क्योंकि तू फिल के साथ नहीं रहने को तैयार है।”

“मैं क्यों रहूँ उसके साथ…? अब तो तुम्हें भी उस तीन साल जेल काटे हुए अपराधी को घर में नहीं आने देना चाहिए।”

“लिसा यह मुझसे नहीं होगा।”

“क्यों नहीं होगा? क्या मैं तुम्हारी बेटी नहीं हूँ…?”

“तू 18 वर्ष की हो गई है, क्यों नहीं जाकर उस काउंसिलर के पीछे पड़ जाती कि तुझको एक कमरे का फ्लैट दिलवा दे?”

“जब मेरे पास अपना घर है तो मैं क्यों जाऊँ?”

“तो फिर तुझे फिल के साथ ही रहना होगा इस घर में…!!”

लिसा सोचने लगी… कितनी कठोर और बेहिस हो गई है उसकी माँ…! फिल के कारण अपनी 18 वर्ष की बेटी को घर से निकल जाने को कह रही है। वह घबराने लगी… अगर यह शैतान घर में वापस आ गया तो कुछ पता नहीं उसके साथ कैसा व्यवहार करे… शायद उसी तरह फिर से दरवाजे से निकलकर भागेगा बेशरम वहशी…।

उस दिन…!!

वह कमरे के दरवाजे से बाहर भागने ही वाला था की लिसा बिजली की तेजी से पलटी, कोहनियों को नरम बिस्तर के ऊपर जोर से दबा कर शरीर को सहारा दिया और शिकारी कुत्ते की तरह दोनों हाथ उसकी बगल के नीचे से डालकर उसको दबोचा और गर्दन के पीछे कंधे के नीचे पूरी ताकत से दाँत ऐसे गड़ा दिए जिन्हें निकालते ही खून बहने लगा।

‘ओह गॉड’…ओह गॉड’ की मकरूह सी आवाज कमरे में चारो ओर चक्कर लगाने लगी। और वह चकराता हुआ कमरे से बाहर उन तंग सीढ़ियों से आड़ा तिरछा होता हुआ नीचे भागा। हाथ से गर्दन का पिछला हिस्सा छुपाए हुए था की कोई बाहर का देख न ले की वहाँ गरदन के नीचे किस शेरनी ने उस गंदे काले खून की होली खेली है…! वह तो क्लिनिक भी नहीं जा सकता था की वहाँ क्या बताएगा? कि क्या गुनाह कर के आया है…! नैन्सी को तो वह मना लेगा पर नैन्सी को काम से वापस आने में काफी समय था।

लिसा समय को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी। माँ की प्रतीक्षा भी नहीं करना चाहती थी। पर गुस्सा और संकोच दोनों एक दूसरे में गड-मड हो रहे थे। पुलिस स्टेशन तो पड़ोस में ही था। उसके एरिया की करप्शन को देखते हुए सरकार ने एक छोटी पुलिस चौकी वहीं बना दी थी। कबूतर के काबुक की तरह बने हुए फ्लैटों में से एक ग्राउंड फ्लोर के फ्लैट में पुलिस स्टेशन था। पुलिस स्वयं भी सामने का दरवाजा बंद करके बैठती। पिछले दरवाजे से आने जाने का काम लिया जाता। जब कभी वे बाहर निकलते तो हथियारों से लैस निकलते और दो तीन एक साथ होते।

लिसा पुलिस चौकी के पिछले दरवाजे पर तेजी से भागती हुई पहुँची। नीले डेन्हिम के शॉर्ट्स उसकी लंबी लंबी गुलाबी टाँगों के ऊपर टेढ़े होकर फँसे हुए थे। छोटी सी कुर्ती, जिससे उसकी पतली सी कमर झाँक रही थी, वह कुर्ती भी उसकी गुस्से से भरी चाल के साथ क्रोध से डोल रही थी। उसके सुनहरे रंग के बाल जो उस समय उलझे हुए सिर के चारों ओर बिखरे पड़े थे। ऐसा लग रहा था जैसे गुलाबी पानी में आग लगी हो।

आग तो उसके भीतर सुलग रही थी। मगर वह डर भी रही थी की अभी जिसको दाँतों से उधेड़ चुकी थी फिर कहीं से निकलकर आ न जाए। वह चौकी के पिछले दरवाजे पर खड़ी घंटी के बटन से हाथ नहीं हटा रही थी। ऐसा लगता था जैसे उसका हाथ घंटी से चिपक गया हो। कभी एक पैर दूसरे पर रखती तो कभी दूसरा पहले पर। इस से बेचैनी का आभास हो रहा था या शायद ऊँची नीची जमीन पैरों में चुभ रही थी…

न जाने दोनों छोटी बहनें कहाँ होंगी कहीं वह उन दोनों को भी…! नहीं… नहीं… नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूँगी…! मैं नैन्सी को सब बता दूँगी… घर से निकलवा दूँगी उसको…! यह पुलिस न जाने कहाँ मर गई है…? दरवाजा क्यों नहीं खुलता…?

“हेलो लिसा…!”

उसने पलट कर देखा तो पीछे सार्जेन्ट लैंग्ली खड़ा हुआ था।

“कैसे आना हुआ?”

कुछ क्षणों के लिए लिसा का जी चाहा की अपने बाप की तरह अपने दोनों हाथ सार्जेन्ट के गिर्द लपेट कर सीने पर सिर रख कर अपने अंदर के बंद गुस्से को आँसुओं के साथ उसके सीने में जज्ब कर दे। अपने दुख हमेशा की तरह अपने बाप की झोली में डाल कर आप हल्की हो जाए… यही तो हुआ करता था बचपन में जब वह अपसेट होती तो अपने डैड से लिपट जाती और आँसुओं का कटोरा उसके सीने में उँड़ेल देती। बाप की कमीज जब भीगने लगती तो “अरे लिसा तू रो रही है?” कहते हुए उसे गोद में उठाकर जोर से लिपटाकर सिर पर प्यार करता और उस वक्त तक लिपटाए रखता जब तक लिसा आप ही अपना सिर बाप के कंधों से उठाकर उसके मुँह को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी ओर न घुमा लेती। दोनों की आँखें मिलतीं, आँखों ही आँखों में दोनों एक दूसरे के प्रति प्यार का यकीन दिला लेते और फिर बाप लिसा को जोर से गदीले सोफे पर पटख देता। फिर खूब हँसता और लिसा को छेड़ता कि कितनी वजनी हो गई है मेरे हाथ टूटे जा रहे थे।

“लिसा खाना खाया तुम तीनों ने?”

“नहीं डैड अभी ममी घर नहीं आई…!”

“काम से छुट्टी को तो काफी देर हो गई है…!!”

”आती ही होंगी डैड।”

”मगर…”

“आओ लिसा अंदर चलें।” सार्जेन्ट लैंग्ली ने चिंता में डूबी लिसा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

बाहर लगी नंबरों की तख्ती पर उसने कोड नंबर मिलाया और दरवाजे का हैंडल घुमाकर दरवाजा खोलते हुए पहले लिसा को अंदर चलने को कहा।

भयभीत लिसा… अंदर जाते हुए झिझकी… मगर सार्जेन्ट लैंग्ली ने हलके से कंधे पर हाथ रख कर उसे अंदर कर लिया और जल्दी से बिजली का बटन दबाया तो तीन चार बल्ब एक साथ जल उठे। छोटा सा एक कमरा बाहर ही को बना हुआ था; एक ऊँची सी लिखने पढ़ने वाली मेज रखी हुई थी; तीन चार कुर्सियाँ पड़ी हुई थीं। सार्जेन्ट ने लिसा को बैठ जाने का इशारा किया और खुद दूसरा दरवाजा खोलकर दूसरे कमरे के अंदर चला गया। वहाँ से टेलीफून पर बातों की आवाजें आने लगीं। अपने साथियों से ऑपरेशन का रिजल्ट मालूम कर रहा था। लिसा समझ गई थी कि आज शायद उसके क्षेत्र में छापा पड़ा है। ऐसा अक्सर होता था। कोई अपराधी कहीं भी अपराध करता पर छुपता आकर इसी इलाके में था।

“यस लिसा हाउ कैन आई हेल्प यू…?”

सार्जेन्ट ने हाथ में एक राइटिंग पैड और पेन्सिल पकड़ी हुई थी जिसके पीछे रबर लगा हुआ था।

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लिसा चौंक गई… घबरा सी गई… मैं यहाँ क्यों आ गई… अब मैं क्या बताऊँ… कैसे बताऊँ…!! माँ के बारे में भी बताना होगा… यह… यह… है कौन… कैसे आया हमारे घर में…?

कितना अच्छा है उसका अपना बाप… कितना शरीफ… न जाने क्यों माँ ने उससे तलाक ले लिया…!!

देखने में भी तो कितना सुंदर है मेरा बाप…! यह बास्टर्ड तो देखने में ही गिद्ध लगता है… माँ शायद बस फँस गई होगी…!!

मेरे पिता के पास तो नौकरी भी थी यह तो हरामखोर है। न जाने क्यों मेरी माँ ने हँसता खेलता परिवार श्मशान घाट बना दिया?

“हेलो लिसा… कैसे आना हुआ…?”

लिसा ने अपना मुँह अपनी पतली पतली लंबी लंबी उँगलियों वाले हाथों से छिपा लिया और आँखें मूँदकर सिर मेज पर टिका दिया। एक लंबी साँस के साथ डरी हुई शर्मिंदा सी काँपती हुई आवाज में बोलने की कोशिश की, मगर आवाज गले में फँस कर अटक गई।

कम ऑन लिसा बोलो जो सच है…

लिसा स्वयं आँखें बंद किए शुतुरमुर्ग की तरह समझ रही थी कि वह छिप गई है और उसे कोई देख नहीं सकता…

फिर उसने झिझकते हुए कहना शुरू किया। दुर्घटना का विवरण कुछ इस गति से दे रही थी बीच में ना तो कोई अल्पविराम और ना ही विराम। एक साँस में बस तोते की तरह जो कुछ गुबार भीतर भरा था सब उगल दिया

“वह… अधिकतर मेरी छोटी बहनों के साथ कंप्यूटर पर गेम खेलता रहता है या फिर टी.वी. के सामने बैठा क्रिस्प खाता है और गहरे भूरे रंग के कालीन पर बिखेरता रहता है टी.वी. से

अधिक उसके मुँह से निकली कुरुर कुरुर की ध्वनि कानों को बेचैन कर देती है जितना खाता है उतना ही फ्लोर पर गिराता और फिर बगैर साफ किए वह नैन्सी के पास कमरे में घुस जाता है और थोड़े ही समय पश्चात निकलकर किचन में पहुँच जाता है और दूसरे दिन का तमाम खाना खा जाता है। कभी कभी तो सुबह के नाश्ते के लिए टोस्ट भी नहीं बचते हैं। नैन्सी जब सुबह नाश्ता बनाने जाती है तो यह देख कर बहुत प्यार से हँसती है और बाहर निकल जाती है ब्रेड लाने। ना जाने क्यों उसे गुस्सा नहीं आता? हम बहनों में से अगर कोई ऐसा करे तो गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाती और हम में से एक को दौड़ाती है ब्रेड लाने को। वह पड़ा सोता रहता है और नैन्सी कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर देती है कि कहीं शोर से उठ ना जाए।”

सार्जेन्ट लिसा को हमदर्दी भरी नजरों से पढता जा रहा था की कितनी गहरी चोट लगी है इस छोटी सी उम्र में। क्या यह इस दुख से कभी उबर भी पाएगी? वह चुपचाप सुनना चाहता था लिसा के दुख।

सार्जेन्ट की टीम वापस आ गई थी। लिसा को वहाँ बैठा देख कर सब अंदर वाले कमरे में चले गए।

“लिसा, पानी पियोगी?”

“हाँ…!” लिसा ने जल्दी से कहा। उसका गला सूखा जा रहा था मगर समझ में नहीं आ रहा था की कहाँ रुके और पानी कब माँगे। वह तो जल्दी से जल्दी मालूम करना चाह रही थी कि सार्जेन्ट बताए कि अब आगे वह क्या कार्यवाही करेगा? उसको क्या सजा देगा? क्या उसके डैडी फिर से वापस आ जाएँगे? हर कदम पर डैडी को याद कर रही थी लिसा।

सार्जेन्ट ने इस बीच अपनी टीम से भी सवाल कर लिया, “क्या रेड (छापे) से कुछ नतीजा भी निकला?”

“हाँ एक लड़का पकड़ा गया है और दो भाग गए।”

ग्राहम पार्क का रोज का यही तमाशा था। न मालूम कहाँ से सारे जहाँ के गुंडे बदमाश यहीं आकर बस गए थे और बेचारे सीधे साधे लोग इनके चक्कर में पिस रहे थे।

सार्जेन्ट ने जैसे ही पानी का गिलास लिसा के हाथ में दिया वह एक ही साँस में गटा-गट हलक से उतार गई। उसकी मासूम, गुलाबी शीशे की तरह चमकती गर्दन से पानी नीचे को जाता हुआ महसूस हो रहा था। उसके सूखे होंठों में कुछ तरावट आई। दाँतों से होंठ काटने लगी। फिर बेचैन होकर सिर मेज पर रख कर आँखें बंद कर लीं।

“लिसा फिर क्या हुआ?”

लिसा ने सार्जेन्ट को सिर उठा कर देखा और आँसू बहने लगे। सार्जेन्ट खामोशी से बैठा रहा। लिसा के अंदर का दुख बह जाने देना चाह रहा था। पानी सूखी हलक से नीचे उतरा तो दुख आँखों से बह निकले।

वह मुझसे भी वैसे ही खेलना चाहता था जैसे मेरी बहनों के साथ खेलता। जिद करता कि मैं भी उसके साथ बैठ कर फिल्म देखूँ और क्रिस्प खाऊँ… मुझे ‘ओ’ लेवेल्स की तैयारी करनी है कहकर मैंने हमेशा पीछा छुड़ाया। मुझे उसकी हरकतें अच्छी नहीं लगती थीं। वह एक गैर-जिम्मेदार, मानसिक बीमार और खुदगर्ज इनसान लगता था। और फिर मेरे डैड की जगह लेकर बैठ गया था। न मालूम मेरी माँ को उसमें क्या नजर आया था। नौकरी भी नहीं करता था। मेरे डैड तो रोज सवेरे पैदल काम पर चले जाते। कार नैन्सी के लिए छोड़ जाते। शनीचर इतवार हम तीनों बहनों को पार्क में ले जाते या बच्चों की फिल्म दिखाने ले जाते। कभी कभी मैक्डॉनल्ड्स में भी खिलाते। ममी को शॉपिंग कराने ले जाते। हर समय कोई न कोई काम ही किया करते। घर की कोई चीज भी टूटती तो आप ही जोड़ लिया करते पर जब उनका अपना दिल टूटा तो हम में से कोई न जोड़ सका।”

“मैंने माँ से बहुत मिन्नत की कि डैड को न छोड़े तलाक न ले पर उस पर न जाने क्या भूत सवार था की हमारा रोना पीटना भी उसकी सोच को न बदल सका। डैड बेचारे न जाने कहाँ रहने चले गए। इतनी मेहनत से उन्हीं ने तो यह घर बनाया था मगर हमारे आराम की खातिर उन्होंने कुर्बानी दी और नैन्सी को घर दे दिया कि हम बहनों को तकलीफ न हो। मेरे डैड जब हमसे मिलने आते तो मैं सवेरे ही से उठ कर बैठ जाती उनके इंतजार में। मैं उनको दूर ही से पहचान लेती क्योंकि लंबे और हैंडसम हैं मेरे डैड। मगर अब झुक कर चलने लगे हैं शायद खाने पीने का ख्याल नहीं रखते।” वह उदास हो गई।

“लिसा तुम्हारे पैरों में चप्पल क्यों नहीं है?”

सार्जेन्ट लिसा को उसके मुद्दे की ओर लाना चाहता था और लिसा मुद्दे से दूर भाग रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था इतनी घिनौनी हरकत सार्जेन्ट से कैसे कहे…!!

सार्जेन्ट बात की तह तक पहुँच चुका था; लिसा को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था इसलिए उसे बड़े पुलिस स्टेशन में शिफ्ट कर दिया था जो कि उस छोटी सी चौकी के करीब ही था। रूथ एक अनुभवी अफसर है। वह लिसा को सँभाल लेगी। इसीलिए सार्जेन्ट ने केस पी.सी. रूथ को सौंप दिया था।

“हेलो लिसा… मै रूथ हूँ।”

लिसा चौंकी और सीधी बैठ गई।

“लिसा फिर क्या हुआ…?” रूथ ने अपनी मीठी और दयालु आवाज में लिसा से आगे बात करने को कहा।

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“हम सभी बिखर गए…” लिसा ने साँस को अंदर को खींचते हुए कहा। “दोनों छोटी बहनें फिल को अपने साथ खेलने वाला खिलौना ही समझती रहीं। उसके साथ खूब उछल कूद करती रहतीं। उन्हीं के बहाने तो माँ ने फिल का आना जाना इस घर में शुरू करवाया था। मगर मुझे उसका इस तरह हमारे परिवार का हिस्सा बन जाना कभी भी पसंद नहीं आया था। छुट्टी के दिन सुबह सवेरे ही से आ धमकता तो सारा दिन मेरे परिवार के साथ ही बिता देता। मेरे बाप को तो माँ छुट्टी के दिन भी काम पर भेज देती ओवर टाइम करने के लिए क्योंकि परिवार बड़ा था पूँजी भी अधिक चाहिए थी। वह खुद छुट्टी के दिन घर पर ही रहती। सारे सप्ताह के कपड़े धोने बाहर लॉण्डरेट में जाती। फिल भी उसके साथ मैले कपड़ों का थैला बना चला जाता।” लिसा को फिल हमेशा गंदगी का थैला ही महसूस होता था। उसे फिल में कोई क्लास या बौद्धिक्ता नहीं दिखाई देती थी। वह एक खिलंदड़ा था… गैर-जिम्मेदार… सिर्फ खाने के लिए जीने वाला पशु…!

लिसा सोचती माँ इसको क्यों इस तरह घर में घुसाए रहती है? कहीं माँ मेरी अरेंज्ड मैरिज के चक्कर में तो नहीं है। यह तो हमारा कल्चर नहीं है…!! मैं क्यों माँ की पसंद से शादी करूँ! मैं तो अपने बॉय-फ्रेंड को अपने डैड से सब से पहले मिलवाऊँगी। मैं शादी करूँगी। जैसे डैड ने की थी… पहले से किसी को पार्टनर नहीं बनाऊँगी… मैं शादी करूँगी… ऐज ए वर्जिन गर्ल शादी करूँगी… वही मेरा वैडिंग गिफ्ट होगा मेरे अपने बुने हुए सपनों को…

“यस मिस लिसा जॉन्सन लेट अस डू दी जॉब…!”

लिसा उछल पड़ी। रूथ उसे गौर से देख रही थी शायद उसके दुखों को बगैर सुने ही पढ़ लेना चाहती थी।

”आज कितनी गर्मी है! तापमान 30 डिग्री पहुँच गया है। मुझे भी बहुत गर्मी लग रही है। मेरे फ्लैट के कमरे बिलकुल मुरगी के दड़बे जैसे हैं। हम तीन बहनें एक बॉक्स रूम जैसी काल कोठरी में रहती हैं। मैं सबसे बड़ी हूँ। मेरा बाप हम तीनों से बहुत प्यार करता था। उसको मेरी माँ ने हम सबसे अलग कर दिया। आजकल मेरा बाप बीमार है और अकेला भी है… मैं… मैं तो…”

“लिसा बताओ यहाँ कैसे आना हुआ…?”

वह फिर सोच में पड़ गई… उठी और बाहर जाने लगी।

“मुझे कुछ नहीं बताना है…”

“लिसा ऐसा नहीं करो। पोलिस हमेशा मदद करती है। पोलिस से कुछ नहीं छुपाते… तुम्हारी इज्जत मेरा फर्ज है।” रूथ ने प्यार से मद्धम पर गंभीर आवाज में कहा।

लिसा फट पड़ी… “मैं ‘ओ’ लेवेल्स के एक्जाम्स के लिए पढ़ रही थी नैन्सी मेरी माँ काम पर गई हुई थी बहनें स्कूल थीं, फिल न जाने कब घर में आ गया मुझे पता ही नहीं चला। चुपके से मेरे कमरे में दाखिल होकर देखो यह सब क्या कर दिया…!!”

देखिए ऑफिसर, वो वहशी मेरे बालों को अपने मुँह के ऊपर लपेट लपेट कर खींचने लगा। बालों को चूस चूस कर बुरी तरह गीला कर दिया। ना जाने कबसे मेरे सुनहरे बालों पर नजर गढ़ाए बैठा था…। और फिर मेरे शरीर को सहलाने लगा और रूथ… अंत में… भेड़िये की तरह भँभोड़ कर रख दिया…।” वह काँपने लगी और उसने अपने उलझे हुए लंबे बाल गर्दन से हटाए और लाल लाल खून जमे हुए निशान पूरी गर्दन पर दिखाए… ”जब वह निकलकर भागने लगा तो मैंने भी पीछा कर के दरवाजे ही पर पकड़ा और दाँत गाड़ दिए उसकी पीठ में मगर अभी तक चैन नहीं आ रहा है मुझे। आज जो एक लड़का पकड़ा गया है उसकी गर्दन के पीछे कंधे की नीचे भी दाँत के निशान हैं पर वह बता नहीं रहा कि किसने काटा…”

“लिसा तुम फिक्र मत करो डी.एन.ए. टेस्ट से सब कुछ साबित हो जाएगा। और हाँ वक्त आने पर तुम्हें प्रेगनेन्सी टेस्ट भी करवाना होगा, उसे सजा तो पक्की है।”

“कितने वर्षों की…?”

“सजा का फैसला कोर्ट करेगी, हम कानून के बारे में कुछ नहीं बोल सकते। पर जुर्म बहुत संगीन है। उसे सजा लंबी होनी चाहिए, तुम अंडर-एज जो हो।”

प्रेगनेन्सी टेस्ट का सुनकर वह डर सी गई। पर यह सुनकर जैसे संतुष्ट हुई… पीले चेहरे पर थोड़ा सा रंग दिखाई देने लगा। पर एकदम से खड़ी हो गई “ऑफिसर मुझे अपने से घिन आ रही है… मैं पवित्र नहीं रही। मैं अछूत हो गई… मेरे पास से दुर्गंध आ रही है ना…? अब मैं नर्स कैसे बनूँगी… मरीजों को कैसे छू सकूँगी… अपनी बहनों को प्यार कैसे करूँगी… अपने डैडी को कैसे अपने दुख बताऊँगी…!”

धड़ से कुरसी पर बैठ गई और मेज पर सिर को मारने लगी।

लिसा का गुस्सा बढ़ता जा रहा था; जैसे जैसे उसे अहसास हो रहा था अपना कुछ खो जाने का’; लुट जाने का… अपने ही घर में आँखों के सामने डाका पड़ जाने का और अपनी मजबूरी का। उसके डैडी ने उसे कुछ संस्कार दिए थे। रोमन केथॉलिक होने के संस्कार। वह अपने जीजस की बताई बातों पर चलना चाहती थी क्योंकि उसके डैडी को वही बातें पसंद थी। नैंसी हमेशा मजहब के खिलाफ बात करती… मजाक उड़ाती मजहब का। उसके अनुसार मजहब के अनुसार चलने वाले दकियानूसी होते हैं… पिछड़े हुए लोग। शुक्र मनाती कि हेनरी अष्ठम ने मजहब को आधुनिक चोला पहना दिया वर्ना आज भी हम कितने पीछे रह गए होते। उसके पिता सदा ही मध्य मार्ग की बात करते। छोटी बहनें स्वयं ही बड़ी बहन को देख कर उसी के पदचिह्नों पर चलना चाहती थीं। इसीलिए कहा जाता है कि पहले बड़े बच्चे को अच्छे संस्कार दे देने से बाद के बच्चे खुद ही उसके पीछे चलने लगते हैं।

लिसा की यह हालत देख कर पी सी रूथ ने केवल कंधे पर हलका सा हाथ रख दिया और चुप खड़ी रही। लिसा अब तुमको अस्पताल जाना होगा चेकअप के लिए।

“क्या तुमको यकीन नहीं आ रहा जो मैं बक रही हूँ…?”

“नहीं लिसा ऐसा नहीं… यह सब कोर्ट की रिक्वाएर्मेंट्स होती है।”

फिर लिसा सोचने लगी कि घर में चैन हो जाएगा… और अब वह अपने डैडी के दिए घर में मजे से रह सकेगी… अपनी बहनों की भी देख भाल कर सकेगी… वे भी सुरक्षित रहेंगी उस भेड़िये से… ना मालूम जेल कब तक जाएगा…!!

नैन्सी ने कुछ दिनों से लिसा को समझाना शुरू कर दिया था कि ओ-लेवेल्स का इम्तहान देने के बाद अपने क्षेत्र की काउंसलर की सलाह उसकी सर्जरी में जाकर अपने लिए एक बेडरूम के फ्लैट की माँग करे। हाउसिंग डिपार्टमेंट वाले फौरन तो सुनते नहीं हैं। दुनिया भर की इंक्वायरी करते हैं। जैसे ही अठारह वर्ष की होगी, अलग फ्लैट में रह सकेगी।

“यह कैसी माँ है?” लिसा सोचती। यहाँ तो बच्चे घर छोड़ कर भागने के चक्कर में होते हैं और यह मुझे भगाने के चक्कर चला रही है! मैंने तो नहीं सोचा कि मुझे फ्लैट लेकर अलग होना है। तो फिर माँ को क्या जल्दी पड़ी है…? हमारे डैडी तो हम तीनों बहनों के लिए ही घर छोड़ कर गए हैं कि हम सुखी रहें।

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वह स्वयं ही माँ के इस रवैये से चिंतित रहते थे, पर संकोच आता ऐसी गंदी बातें पत्नी के बारे में सोचते हुए। उसकी उज्जवल धुली धुलाई साफ सुथरी बेटियों ने उसी माँ की कोख से जन्म लिया है। ‘मेरी बेटियाँ तो मदर मेरी की तरह पवित्र, मासूम और सुंदर हैं।’

कितना प्यार करते थे हमारे पिता हमसे, मुझको तो कितना बड़ा हो जाने तक कंधे पर उठा लेते और पूरे घर के चक्कर लगाते… ये सोचकर लिसा को अपने बड़े हो जाने पर हल्की सी कसक महसूस होती…

ये सोचकर कि यदि आज डैडी होते और मैं अपने मजबूत डैडी के मजबूत कंधों पर बैठ जाती तो मेरी टाँगें तो धरती को चूमती ही रहतीं… वह यह सोच कर चकराने लगी कि उस दिन इन्हीं लंबी टाँगों से रक्त की बारीक सी कुँवारी लकीर बह कर घुटनों और टखनों तलक पहुँचकर वैसे ही खो गई जैसे नदियाँ अपने अस्तित्व को समुद्र में समर्पित कर गुम हो जाती हैं। गुम वह भी थी इस उधेड़बुन में कि माँ ने काउंसलर के पास जाने की रट क्यों लगाई हुई है…?

महसूस तो उसको होता था अंदर से खोखलापन… टूट गई थी जैसे, जब उस अधखिली कुँवारी का प्रेगनेन्सी टेस्ट हुआ था। लॉर्ड जीजस ने अपना स्नेह बनाए रखा और उसका टेस्ट निगेटिव निकला। यदि ऐसा ना होता… इसका उल्टा हो जाता तो क्या वह जी सकती थी इस पाप के बीज को लेकर! कभी नहीं… कभी नहीं…! हालाँकि अब वह इस घनघोर समस्या से बाहर आ गई थी… मगर…

समस्याओं ने तो उसका परिवार ढूँढ़ लिया था। घर तो उसी दिन दुखों की सुपर मार्केट बन गया था जिस दिन वह दुम हिलाता कुत्ता इस घर में आया था… अब वह फिल को ऐसे ही संबोधन से याद करती। लिसा का इतना बड़ा बलिदान देने के बाद उसकी अपनी माँ संयम से काम लेगी, लिसा सोचती। यही एक आशा उसको सहारा दिए हुए थी…। मगर माँ, उसके बड़े हो जाने पर इसलिए खुश है कि अब वह अलग फ्लैट में शिफ्ट हो जाएगी।

माँ…! मैं क्यों बेईमानी करूँ…! मेरे पास तो रहने को दिया हुआ घर मौजूद है। और हाँ डैडी को तो काउंसिल से फ्लैट भी मिल गया है। मैं क्यों काउंसिल पर बोझ बनूँ? मेरे बदले वो फ्लैट किसी होमलेस व्यक्ति को मिल जाएगा।

लिसा जितनी ईमानदार थी, माँ नैन्सी उतनी ही चांडाल। उसका तो खमीर ही गड़बड़ है। कोई सोच सीधी रेखा पर चलती ही नहीं थी। उलझी बातें करती और उसी में उलझा देती आसपास के रिश्तों को।

“लिसा, आज शनिवार है; काउंसलर दस से साढ़े ग्यारह बजे तक ग्राहम पार्क लायब्रेरी के एक कमरे में बैठती है। तू पौने दस बजे ही जा कर बैठ जा। शायद तेरा नंबर पहला ही आ जाएगा। सुना है काउंसलर दुखी लोगों का कष्ट महसूस करने वाली महिला है।”

“माँ तुमने जो दुख दिया है उसको काउंसलर तो क्या संसार का कोई भी व्यक्ति नहीं धो सकता…। मैंने कह दिया है… न तो मैं काउंसलर के पास जाऊँगी और ना ही अलग फ्लैट में। मैं अपनी बहनों के साथ अपने डैडी के दिए हुए घर ही में रहूँगी।”

“मेरी बात मान ले लिसा… जिद ना कर… अब इस घर में भीड़ बढ़ रही है।”

“आज तक तो घर में भीड़ नहीं महसूस हुई। अब अचानक क्या हो गया है? माँ… मैं कोई एसाइलम सीकर नहीं हूँ… जिसके पास रहने की कोई जगह ना हो। मैं इसलिए नहीं जाऊँगी कि किसी जरूरतमंद का हिस्सा मारा जाएगा और इसलिए भी नहीं जाऊँगी कि मेरे पास घर है… मैं बेघर नहीं हूँ। हाँ बे-माँ जरूर महसूस करने लगी हूँ…!”

उस दिन पहली बार लिसा के व्यवहार में कड़वाहट की मिलावट महसूस हो रही थी। लिसा का शहद की तरह मीठी लहजा शेविंग ब्लेड की तरह कटारी चीरता चला जा रहा था।

नैंसी तो बेहिस हो चली थी… खुदगर्ज, लापरवाह… केवल अपने बारे में सोचना… और… अपने ही लिए जीना… और फिर अपनी बेचारगी के दुख रोना।

और…

कितनी बेचैन थी नैन्सी उस दिन…

उस दिन से वर्षों तक मुलाकात वाले दिन तीन घंटा जाना और तीन घंटा आना करती रही। लिसा को कोसती रही कि इस अभागन के कारण मेरा फिल जेल गया इसका भी तो सौतेला बाप हुआ… इसको बाप का कोई ख्याल नहीं…!!

आज जब वह वापस आने वाला है तो सवेरे ही से नैंसी अपना बेडरूम सजाने में वयस्त है। अपने मोटे मोटे काले मैल भरे नाखूनों में से खोद खोद कर मैल निकालकर नाखूनों को गाढ़ा लाल रंग कर बीर बहूटी बना रही है। बालों में भी रोलर लगाए घूम रही है कि घुँघर वाले बाल जरा घने लगेंगे वर्ना सिर की खाल जगह जगह से दिखाई देने लगी है। ब्लाउज के साथ काली चमड़े की मिनी स्कर्ट, घुटनों से दस इंच ऊपर कूल्हों पर फँसी, पहनकर बाहर निकली और मॉडल बनकर खड़ी हो गई। दोनों छोटी बेटियों से राय लेने लगी कि – मैं कैसी लग रही हूँ…? वो दोनों देखकर खिलखिलाने लगीं और लिसा की नजर सीधे उसकी टाँग पर उभरी हुई नाड़ियों पे जा टिकी – जैसे विश्व की एटलस की तमाम नदियाँ नीला जाल बिछाए और कहीं कहीं छोटे छोटे खून जमे हुए टीले बने नजर आ रहे थे।

वह कमरे से बाहर निकल गई, माँ की लाल साटन की ब्लाउज पर नजर डालते हुए जिसमें से उसके अंग बाहर को उबल पड़ रहे थे। नैन्सी ने बेटियों का भौंचक्कापन देखकर स्वयं ही सोचा कि ब्लाउज इतनी ऊँची होनी चाहिए कि उसकी गोरी कमर और पेट नजर आए। कमरे का पीला बीमार सा बल्ब निकाल कर लाल रोशनी वाला बल्ब लगा दिया कि कमरा देखते ही फिल के होश उड़ जाएँ… और…!

उसे क्या मालूम फिल को तो कच्चा खून मुँह को लग चुका है…!

और आज उस से कहीं अधिक बेचैन है लिसा…! उसे जब अहसास हुआ कि आज वह दरिंदा वापिस आ रहा है और माँ उसको इसी घर में वापिस ला रही है जहाँ उसकी अपनी बेटी की जीवन भर की तपस्या… कुँवारी रहने की तपस्या… जीजस क्राइस्ट के बताए रास्तों पर चलने की तमन्ना, मदर मेरी की तरह पवित्र रहने की ख्वाहिश और पिता के सिखाए संस्कारों पर कायम रहने की उमंग… अब तो सब भंग हो चुका है। पर यह नैन्सी अब भी बाज नहीं आती… क्या दोनों बहनों की भी बलि लेगी…? ऐसा नहीं होने दूँगी… कभी नहीं…

काउंसिलर के सामने खड़ी गिड़गिड़ा रही है, “मैं कुछ नहीं जानती मुझे अलग फ्लैट चाहिए… एक कमरे का चाहिए… मैं अपना घर छोड़ दूँगी… छोड़ दूँगी अपना घर… हाँ छोड़ दूँगी अपने डैडी का घर…”

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