वे सब आपस में किसी को नहीं जानते थे
इससे पहले कभी सपनों में भी नहीं मिले
और आज उस छत के नीचे इकट्ठा थे लोग
रोजमर्रा के कपड़ों में वह स्टेज पर आई
उसे एक कोरस प्रस्तुत करना था
दर्शकों से इस तरह बतियाने लगी जैसे कब से जानती हो
वह जैसे कथानक से बाहर निकल आई
लोगों को यह स्वाद नया लगा
पारंपरिक कोरस की जगह एक लड़की
बिना किसी बनाव श्रृंगार के सादे तरीके से गा रही थी
मंच पर उस लड़की से बातें करते हुए दर्शक
बहुत उत्तेजित महसूस कर रहे थे
नाटक का यह हाइ प्वाइंट था
ऐसे भी दृश्य आए
जहाँ संवादों की जगह चीखें डाल दी गईं थीं
ज्यादातर दर्शक संभ्रम में थे
कुछ खिखिया रहे थे कुछ मौन
इन वर्षों ने सिखाया था एक दूसरे से डरना
प्रार्थनागृहों के आगे लंबी कतारों में इंतजार
संभावनाओं और भविष्य के बारे में हताश रहना
उस खास क्षण वे मंच पर अपने कुनबे के साथ आए
जैसे इतिहास के रैंप पर कैटवाक कर रहे हों
हजारों लोगों ने चिल्लाकर उनका अभिनंदन किया
करोडों ने अपने टी वी सेट्स पर
जीवन में पहली बार लोगों को लग रहा था
इस बार तो जरूर कुछ फरक होगा
आने वाले दिनों के बारे में अनुमान नहीं था
नतीजों के बारे में कोई सवाल तक नहीं