जब किसी तरह खड़ी हुईं वे बोलनेगीली थी हथेलियाँ और उलझी उँगलियाँघुसी जा रही थीं पैरों की चप्पलें आपस मेंसीधी खड़ी नहीं हो पा रही थीं या आदत नहीं रहीं होइसे प्रचारित किया गया उनकी विनम्रता की तरह मान्यता थी कि वे लताएँ हैंउन्होंने जीवन धारण किया दूसरी जगहपड़ी रही थोड़े दिनों प्रेम मेंबना रहा […]
Tag: Sarvendra Vikram
Posted inPoems
साजिदा की प्रेमकथा
Posted inPoems
मूँगफलियाँ
Posted inPoems