बिछावन | दिव्या माथुर बिछावन | दिव्या माथुर ओस की बूँदों सेअब फिसल चुके हैं बच्चेउनके वसंत परक्यों मैं पतझड़ सी झड़ूँउस स्पर्श का अहसासबिछा लूँओढ़ उसे ही कुछ सो लूँ