तुम्हारी दुनिया में मैं | अभिज्ञात
तुम्हारी दुनिया में मैं | अभिज्ञात
अच्छा होता कि मेरी दुनिया होती निहायत ही मेरी
और तुम्हारी खालिस तुम्हारी
मेरी दुनिया में तुम होती मेरी तरह
और तुम्हारी दुनिया में मैं तुम्हारे मनमाफिक
क्या है ऐसी कोई जुगत कि दोनों की दुनिया रहे सलामत
एक दूसरे को बगैर पहुँचाए कोई ठेस
होती
दोनों के बीच एक खिड़की
जिससे झाँककर देखता मैं
कि रह रहा हूँ मै कितने इतमीनान से
तुम्हारी दुनिया में
तुम भी आती कभी पूछने हालचाल अपना
क्या हमें नहीं चाहिए कोई और अपनी दुनिया में!
क्या हमें चाहिए आईनाघर
जहाँ हम हों हमारी सूरत हो
हम हों और हो हमारी कल्पना
हम हों और हमारी पूरी होती अभिलाषाएँ
हम हों और हमारे इशारों पर नाचती दुनिया
कितना अच्छा हो कि हम हों और हो दुनिया निहायत दूसरे की।