तुम से | ओम प्रकाश नौटियाल
तुम से | ओम प्रकाश नौटियाल
हो भाव शून्य सी चकित चकित
न टुकुर टुकुर निहारो तुम,
भृकुटि ताने यूँ खिंची कसी
चिंतातुर हो न विचारो तुम,
अधरों पर रहती खिली खिली
सब कुछ स्वप्निल स्वप्निल लगता,
अधरों से ही जब सिली सिली
सब व्यर्थ, अनर्थ मलिन लगता,
हिम्मत न तनिक भी हारो तुम
जीवन जीने के उपक्रम में
कितनी संध्या से गुजरेंगे,
कितने सपने फिर टूटेंगे
कितनी तंद्रा से उबरेंगे,
यह सत्य न कभी बिसारो तुम
जीवन पथ पर संग संग में
सुख दुख की आवाजाही है,
जिस पथ से हमको चलना है
यह भी उस पथ के राही हैं,
हँस हँस कर राह सँवारो तुम
यह सत्य बस आत्मसात करो
रह कर न व्यथित मुरझाओ तुम,
संघर्ष नाम इस जीवन का
यह सोच सोच हर्षाओ तुम,
प्रभु नाम सदा उच्चारो तुम