मातृभाषा | राजेंद्र प्रसाद पांडेय मातृभाषा | राजेंद्र प्रसाद पांडेय चोट लगती है तुम्हेंछाले पड़ जाते हैं मुझेवसंत छाता है तुम्हेंइतरा उठते हैं मुझ पर फूलओ मेरे औरसों! तुम्हारे शरीरों सेपसीने की तरहआत्माओं सेउद्गारों की तरहहृदयों सेकरुणा की तरहविगलित पयस्विनीहूँ मैंओ मेरे पूर्वजों! यह तो खून-खून का संबंध हैजो कुछ तुम्हारी आँखों मेंछलछलाता हैवही मेरे […]
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माँ | राजेंद्र प्रसाद पांडेय
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नदी-चक्र | राजेंद्र प्रसाद पांडेय
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