हिलती कहीं | परमानंद श्रीवास्‍तव

हिलती कहीं | परमानंद श्रीवास्‍तव

हिलती कहीं | परमानंद श्रीवास्‍तव हिलती कहीं | परमानंद श्रीवास्‍तव हिलती कहींनीम की टहनी !भूल गईं वे बातें कब कीसब जो तुम को कहनी। गंध वृक्ष से छूटी-छूटीचलीं हवाएँ कितनी तीखीमार रही हैं कैसे तानेकहती हैं –कैसी-अनकहनी ! हिलती कहींनीम की ट-ह-नी !

हादसे का एक दिन | परमानंद श्रीवास्‍तव

हादसे का एक दिन | परमानंद श्रीवास्‍तव

हादसे का एक दिन | परमानंद श्रीवास्‍तव हादसे का एक दिन | परमानंद श्रीवास्‍तव एक दिन ऐसे ही गिरूँगा टूटकरमहावृक्ष के पत्‍ते-साकुछ पता नहीं चलेगानिचाट सुनसान में चीख फट पड़ेगी बाहरझूल जाऊँगा रिक्‍शे से लिटा दिया जाएगा खुरदुरी जमीन परक्‍या यह अंत से पहले का हादसा है गनीमत कि बेटी साथ थीउसके जानने वाले थेबिसलरी … Read more

हवाएँ न जाने | परमानंद श्रीवास्‍तव

हवाएँ न जाने | परमानंद श्रीवास्‍तव

हवाएँ न जाने | परमानंद श्रीवास्‍तव हवाएँ न जाने | परमानंद श्रीवास्‍तव हवाएँ,न जाने कहाँ ले जाएँ।यह हँसी का छोर उजला यह चमक नीलीकहाँ ले जाएँ तुम्हारीआँख सपनीली चमकता आकाश-जल होचाँद प्यारा होफूल-जैसा तन, सुरभि-सामन तुम्हारा हो महकते वन हों नदी-जैसीचमकती चाँदनी होस्वप्न-डूबे जंगलों मेंगंध डूबी यामिनी हो एक अनजानी नियति सेबँधी जो सारी दिशाएँन … Read more

धीरे-धीरे | परमानंद श्रीवास्‍तव

धीरे-धीरे | परमानंद श्रीवास्‍तव

धीरे-धीरे | परमानंद श्रीवास्‍तव धीरे-धीरे | परमानंद श्रीवास्‍तव धीरे-धीरे डूबता है दिनधीरे-धीरे आती है रातधीरे-धीरे चढ़ता है बुखारजैसे प्यार का ज्वार धीरे-धीरे आती है मृत्युधीरे-धीरे रुकती है ट्रेनबेगूसराय स्टेशन पर धीरे-धीरे आता है डाकियादेता है खत संदेशधीरे-धीरे आदमी अकेला होता हैउम्र के अंतिम पड़ाव परजब घंटी बजती है फोन कीपर नहीं सुनाई देतीआते हैं एसएमएसपर … Read more

इन दिनों | परमानंद श्रीवास्‍तव

इन दिनों | परमानंद श्रीवास्‍तव

इन दिनों | परमानंद श्रीवास्‍तव इन दिनों | परमानंद श्रीवास्‍तव इन दिनों हत्‍यारेसबसे पहलेअपने शिकार कोसुरक्षा की पक्‍की गारंटी देना चाहते हैं हमारे समय केबर्बर विजेता भी अकेले वे नहीं आतेझुंड में आते हैंअपने पक्ष के सारे प्रमाणऔर दस्‍तावेज लिएआते हैं अपना इतिहास और अपना भूगोलअपने पहाड़ और अपनी नदियाँअपनी पद्मिनियाँ और अपने मानसरोवरलिए आते … Read more

आरण्यक | परमानंद श्रीवास्‍तव

आरण्यक | परमानंद श्रीवास्‍तव

आरण्यक | परमानंद श्रीवास्‍तव आरण्यक | परमानंद श्रीवास्‍तव एक दिन हम खो जाएँगेछिप जाएँगे दुनिया सेरहने लगेंगेअदृश्य कोटर में पेड़ में गजमुखआसमान की पीठ पर चंद्रमाडालियाँ सूखी छितराई आसपास सभी पूछेंगेछिपने का राज हम एक दूसरे को देखेंगे औरकुछ भी कहने से पहलेमुस्कराएँगे फिर भी कुछ भी बताना हमेंनिरर्थक लगेगाएक दिन हम छोड़ जाएँगे यह … Read more